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स्कूल यूनिफॉर्म में खरीद-फरोख्त अच्छी

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 17 2015 12:20PM | Updated Date: Jun 17 2015 12:20PM
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व्यापार प्रतिनिधि - 98260-11032
इंदौर। मध्यप्रदेश के कई प्राइवेट स्कूल शुरू हो गए हैं जिससे तैयार स्कूल यूनिफॉर्म में उपभोक्ताओं की अच्छी खरीदारी देखी जा रही है। इसके अलावा सूटिंग-शर्टिंग में भी यूनिफॉर्म निर्माताओं की अच्छी डिमांड बनी हुई है जो जुलाई मध्य तक रहने की संभावना है। हालांकि इस साल पट्रोल, डीजल और कलर केमिकल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के कारण कपड़ों की लागत भी ऊंची हुई है जिससे भीलवाड़ा में सूटिंग-शर्टिंग के दामों में कुछ तेजी आई है। 
 
इसका असर घरेलू बाजार में भी देखने को मिल रहा है। इस बार तैयार स्कूल यूनिफॉर्म के दाम भी पिछले साल से करीब 5-10 फीसदी ज्यादा हैं। दूसरी ओर वैवाहिक मुहूर्त कम होने के कारण थोक बाजार में सुस्ती का माहौल बना हुआ है। इंदौर और आसपास के व्यापारी खरीदी से पीछे हटे हुए हैं जिससे कामकाज ठप है। इंदौर थोक कपड़ा मार्केट के कुछ बड़े व्यापारियों का मानना है कि फिलहाल सभी की निगाहें मानसून पर टिकी हुई हैं। 
 
अच्छे मानसून पर ही त्योहारी ग्राहकी निर्भर करेगी। अगर इस महीने अच्छी बारिश हो जाती है तो 15 जुलाई से रक्षाबंधन की पूछपरख बाजार में शुरू हो जाएगी और व्यापारी भी जुलाई के पहले सप्ताह से खरीदी के लिए उत्पादक केंद्रों का रुख कर सकते हैं। व्यापारियों की डिमांड श्रावण को ध्यान में रखते हुए लहरिया, चुन्नड़ में ज्यादा रहेगी। सूरत में आजकल लहरिया भी नई-नई डिजाइनों में आने लगा हैै। कलरफुल के साथ ही लहरिया साड़ियों पर एम्ब्रायडरी, रेशम वर्क आदि बाजार में दिखाई देने लगे हैं जिसकी रेंज 500 से लेकर 1000 रुपए तक है। 
 
सूरत से कैटलॉग पेंटेड की साड़ियां भी बाजार में खूब आने लगी हैं जिसकी रेंज 300 से लेकर 700 रुपए प्रति नग रही। इसके अलावा दुल्हन की फैंसी साड़ियों में नेट पर एम्ब्रायडरी वर्क, वेटलेस साड़ियों की भी अच्छी पूछपरख बाजार में देखी गई। इसकी रेंज 700 से लेकर 1500 रुपए तक थी। लेनदेन के लिए 150 से लेकर 300 रुपए तक की साड़ियों का कामकाज भी जोरदार रहा। हालांकि फिलहाल लग्न के मुहूर्त कम होने से कामकाज जैसा होना चाहिए वैसा नहीं है। 
 
निर्यात में कमी से उधड़े धागे
चीन को किए जाने वाले सूती धागे का निर्यात घटने और कमजोर मांग की वजह से इसकी कीमतें काफी नीचे आ गई हैैं। यही कारण है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारतीय कताई मिलें बड़ी परेशानी के दौर से गुजर रही हैं। पूरे भारत की कताई मिलों के मुनाफे पर इसका सीधा असर देखने को मिल रहा है। कच्चे माल की कीमतों में आई गिरावट के बावजूद मिलें वित्त वर्ष 2015 में बेहतर मुनाफा कमाने में नाकाम रहीं क्योंकि उन पर पहले का बकाया काफी अधिक है और उन्हें जरूरत से ज्यादा आपूर्ति की स्थिति का सामना भी करना पड़ रहा है।
 
सूत्रों के अनुसार आंकड़ों के मुताबिक 46 सूचीबद्घ कताई कंपनियों की कमाई वित्त वर्ष 2015 में स्थिर रही। वित्त वर्ष 2014 में इन कंपनियों की कमाई 32,813 करोड़ रु. थी जो वित्त वर्ष 2015 में घटकर 32,483 करोड़ रु. रह गई। दूसरी तरफ उनका मुनाफा 1041 करोड़ रु. से घटकर महज 76 करोड़ रुपए रह गया। मार्च तिमाही में इन कंपनियों को तगड़ा झटका लगा और ज्यादातर कंपनियां घाटे में रहीं।
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