शहरों में बढ़ती हुई आबादी और जगह की कमी की वजह से वास्तुशास्त्रोक्त भूमि तथा भवन का प्राप्त होना लगभग असंभव-सा होता जा रहा है। शहरों में विकास प्राधिकरणों द्वारा दिए जा रहे प्लॉट या फ्लैट पूरी तरह से वास्तु के अनुसार नहीं होते हैं। इन प्लॉटों या फ्लैटों में वास्तुशास्त्रोक्त सभी कक्षों का निर्माण भी सम्भव नहीं होता है। अत: न्यूनतम कक्षों में भी वास्तुशास्त्रीय दृष्टि से लाभ प्राप्त करने के लिए गृह की आंतरिक सज्जा में किस कक्ष में क्या व्यवस्था होनी चाहिए
मुख्य द्वार : घर के मुख्य द्वार पर मांगलिक चिन्हों जैस- स्वास्तिक का प्रयोग करना चाहिए। घर में मुख्य द्वार जैसे अन्य द्वार नहीं बनाने चाहिए तथा मुख्य द्वार को फल, पत्र, लता आदि के चित्रों से अलंकृत करना चाहिए। इसी प्रकार मुख्य द्वार पर कभी भी वीभत्स चित्र इत्यादि नहीं लगाने चाहिए।
बैठक कक्ष या ड्राइंग रूम- घर का यह कमरा अत्यंत महत्वपर्ण है। इस कक्ष में फर्नीचर, शो केस तथा अन्य भारी वस्तुएं दक्षिण-पश्चिम या नैऋत्य में रखनी चाहिए। फर्नीचर रखते समय इस बात का ध्यान रखे कि घर का मालिक बैठते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठे। इस कक्ष में यदि कृत्रिम पानी का फव्वारा या अक्वेरियम रखना हो तो उसे उत्तर-पूर्व कोण में रखना चाहिए। टीवी दक्षिण-पश्चिम या अग्नि कोण में रखा जा सकता है। बैठक में ही मृत पूर्वजों के चित्र दक्षिण या पश्चिमी दीवार पर लगाना चाहिए। इस कक्ष की दीवारों का हल्का नीला, आसमानी, पीला, क्रीम या हरे रंग का होना उत्तम होता है।
शयन कक्ष- शयन कक्ष में कभी भी देवी-देवताओं या पूर्वजों के चित्र नहीं लगाने चाहिए। इस कक्ष में पलंग दक्षिणी दीवारों से सटा होना चाहिए। सोते समय सिर दक्षिण या पूर्व दिशा में होना चाहिए। ज्ञान प्राप्ति के लिए पूर्व की ओर तथा धन प्राप्ति के लिए दक्षिण की ओर सिर करके सोना प्रशस्त है। शयन कक्ष में सोते समय पैर दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। सोते समय जातक को कभी भी वास्तु पद में तिर्यक रेखा में नहीं सोना चाहिए। ऐसा करने से जातक को गम्भीर बीमारियां हो जाती हैं। शयन कक्ष में दर्पण नहीं होना चाहिए, इससे परस्पर कलह होता है। इस कक्ष की दीवारों का रंग हल्का होना चाहिए।