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वास्तुशास्त्र के आधारभूत सिद्धान्त

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 1 2015 6:24PM | Updated Date: Apr 1 2015 6:24PM
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वास्तुशास्त्र के ऋषियों एवं महर्षियों ने प्राचीन एवं अवार्चीन वैदिक ग्रन्थों का गंभीरता पूर्वक विवेचन करके इस शास्त्र के नियमों, विधियों प्रविधियों के आधार पर वास्तुशास्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। जिसको अपनाकर नवीन भवन का निर्माण करने के साथ वास्तु दोषों के परिहार तथा जीर्णगृह, गृह की मरम्मत की जा सकती है। वास्तुशास्त्रियों  द्वारा अपनाए गए सूत्र निम्न प्रकार है।
 
किसी भी प्रकार की व्यवसायिक तथा आवासीय इकाई जिसका प्रयोग रहने या कार्य करने उद्देश्य से किया जाय उसे वास्तु कह सकते है। तथा इस इकाई के लिए नियमों, उपनियमों, सिद्धान्तों, प्रविधियों का जिस शास्त्र में वर्णन किया गया है उसे वास्तुशास्त्र कहते हैं। वास्तुशास्त्र ज्योतिषशास्त्र का अङ्ग है, जिसे पंचमवेद भी कहा जाता है। 
 
वास्तुशास्त्र तथा ज्योतिष का संबन्ध वैसा ही है जैसा कि - शरीर तथा उसके विभिन्न अङ्ग उपाङ्ग का। ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र दोनों में समानता यह है कि दोनो मानव कल्याण की बात करते हैं। तथा दोनो ही शास्त्रों में व्यक्ति की सुविधा तथा सुरक्षा इसका मुख्य उद्देश्य हैं। वास्तुशास्त्र प्राकृतिक शक्तियों का सामञ्जस्य तथा प्रबन्धन करने का शास्त्र है। वास्तुशास्त्र तथा ज्योतिषशास्त्र में मुख्य भेद इतना है कि वास्तुशास्त्र वातावरण का अध्ययन तथा प्रबन्धन करके मानव कल्याण की बात करता है, परन्तु ज्योतिषशास्त्र वातावरण के साथ-साथ वंशानुक्रम, काल तथा जन्मजन्मान्तर-कृत कर्म का भी विचार करता है। यदि जमीन का घनत्व ठीक नहीं हो, तो उस स्थान पर गृह का निर्माण कदापि नही करना चाहिए।
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