लखनऊ। पिछले साल मुस्लिमों के योग करने पर उठे विवाद को लेकर मुस्लिम रहनुमाओं का कहना है कि योग को मजहब से जोड़कर न देखा जाए। इन धर्मगुरुओं का मानना है कि जो लोग योग को लेकर मुसलमानों की सोच पर शक करते हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि दुनिया के बहुत से इस्लामी मुल्कों ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की रवायत को अपनाया है।
इस कड़ी में आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना सज्जाद नोमानी ने कहा कि योग हिंदुस्तान का कीमती सरमाया (पूंजी) है, मगर इसे मजहब से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इस्लाम शारीरिक फिटनेस को बहुत प्रोत्साहित करता है। इस मजहब में तंदुरुस्त रहने से जुड़ी हर चीज को बेहतर माना गया है। उसी तरह बाकी धर्मों के रहनुमाओं ने भी अपनी-अपनी कौम के लोगों को फिट रखने के दीगर तरीके ईजाद किए हैं। योग दरअसल एक कसरत है और उसे उसी तरह से लिया जाना चाहिए।
'योग का राजनीतिक इस्तेमाल ना हो'
जहां तक योग का सवाल है तो एक कसरत के रूप में बेहतरीन चीज है। मगर उसके लिए किसी ऐसी क्रिया को अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए, जिसे दूसरे धर्म के लोग स्वीकार ना कर सकें। सबसे जरूरी बात यह है कि योग का राजनीतिक इस्तेमाल ना हो। मगर, अफसोस यह है कि ऐसा किया जा रहा है। मौलाना नोमानी ने कहा कि किसी पर कोई खास शारीरिक अभ्यास थोपना सही नहीं है।
'आज हजारों मुसलमान योग करते हैं'
आॅल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि मैंने खुद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ लखनऊ में योग किया था। बहुत से इस्लामी मुल्कों ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को अपनाया है। आज हजारों मुसलमान योग करते हैं। योग के दौरान किए जाने वाले मंत्रोच्चार पर मौलाना अब्बास ने कहा कि मुसलमान सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं। योग को इबादत समझकर नहीं किया जाना चाहिए।