मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजयसिंह पर कांग्रेस आलाकमान बड़ी कार्रवाई कर सकता है। गोवा के प्रभारी दिग्विजयसिंह को लेकर गोवा के कांग्रेस विधायक गुस्से में हैं। गोवा के कांग्रेसी विधायकों का मानना है कि पार्टी प्रभारी ने सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी सरकार बनाने की कोशिश नहीं की है। कांग्रेस के कई नेता गोवा में सरकार न बन पाने के लिए दिग्विजयसिंह को जिम्मेदार मान रहे हैं।
40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में कांग्रेस ने 17 सीटें जीती जबकि बीजेपी ने सिर्फ 13। बावजूद इसके बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही। कारण कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा ही पेश नहीं किया। आखिर सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस ने दावा क्यों पेश नहीं किया?
बीजेपी के दावा पेश करने के बाद भी कांग्रेस ने राज्यपाल को अपना दावा पेश नहीं किया। राज्यपाल को दावा पेश करने के बजाय कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट गई। क्या दिग्विजयसिंह इतने नौसिखिए हैं की उन्हें संवैधानिक व्यवस्थाओं का ज्ञान नहीं। आखिर 10 साल तक मुख्यमंत्री रहने और हमेशा बीजेपी को घेरने वाले दिग्गी ऐसी गलती कैसे कर सकते हैं? क्या दिग्विजय और बीजेपी की कोई सांठगांठ हैं? या कांगेस आलाकमान ने दिग्विजय को समय रहते फ्री हैण्ड नहीं दिया।
लगातार कमजोर होती कांग्रेस के लिए गोवा की जीत एक उम्मीद लाई थी। पर इस उम्मीद को कांग्रेस ने खुद ही बुझा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी कांग्रेस की याचिका ख़ारिज करते हुए, बीजेपी के मनोहर पर्रिकर को 16 मार्च पेश करने को कहा है। कोर्ट ने कांग्रेस को भी फटकार लगाई कि राज्यपाल के पास जाने के बजाय यहां क्यों आए? सूत्रों के अनुसार कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा दिग्विजयसिंह पर कार्रवाई के पक्ष में है। संभव ने कांग्रेस आलाकमान दिग्विजयसिंह को तलब करे। दिग्विजयसिंह के कांग्रेस कई मौकों पर कमजोर साबित हुई।
लोकसभा चुनाव में दिग्विजय के करीबी राजकुमार पटेल ने गलत परचा दाखिल कर दिया था, और परचा ख़ारिज होने पर वे चुनाव नहीं लड़ सके थे। इस सीट से बीजेपी की सुषमा स्वराज को एक तरह से वाक ओवर मिल गया था। तब भी दिग्गी पर बीजेपी से साठगांठ के आरोप लगे थे। जानकार बताते हैं कि व्यापम घोटाले में भी शिवराज को सही ढंग से आक्रामक रूप से न घेरने के पीछे भी दिग्विजय ही हैं। उनके करीबी लोगों का कहना है कि वे बोलते बहुत खूब हैं, पर जमीनी प्रदर्शन से वे अक्सर कन्नी काट जाते हैं।