इंफाल। मणिपुर में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहीं इरोम शर्मिला पूरी तरह से नकार दी गईं। उन्हें महज 90 वोट मिले। 16 साल तक मानवाधिकार की लड़ाई करने वाली इरोम शर्मिला हार से आहत हुईं। उन्होंने शनिवार को ही राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया। मैंने सक्रिय राजनीति छोड़ने का फैसला लिया है। मैं दक्षिण भारत चली जाउंगी क्योंकि मुझे मानसिक शांति चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं आफस्पा के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखूंगी, जबतक वह हटा ना लिया जाये। लेकिन मैं सामाजिक कार्यकर्ता की भांति लड़ती रहूंगी।’ मणिपुर के थोबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली शर्मिला चौथे स्थान पर रहीं उन्हें महज 90 मत मिले। शर्मिला की नवगठित पार्टी के दो अन्य उम्मीदवारों की भी जमानत जब्त हो गयी है।
इरोम अब चुनाव नहीं लड़ेंगी
विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद इरोम शर्मिला ने कहा कि मुझे नतीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। यह लोगों की सोच पर निर्भर है। वह कहती हैं कि इन चुनावों में तमाम राजनीतिक दलों ने खुल कर बाहुबल और धनबल का इस्तेमाल किया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इरोम ने भविष्य में कभी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।
इरोम का चुनावी सफर?
मणिपुर विधानसभा चुनाव में सभी की नजरें इरोम शर्मिला पर टिकी थीं। इरोम ने सशस्त्र बल विशोषाधिकार अधिनियम, 1958 के खिलाफ बीते साल अपने 16 साल लंबे अनशन को तोड़कर राजनीति में आने का फैसला लिया था। पिछले साल ही उन्होंने अपना अनशन तोड़ा था। शर्मिला की पीपुल्स रिसर्जेसेंजेंस एंड जस्टिस एलाइंस(प्रजा) पार्टी ने 60 में से 3 सीटों पर चुनाव लड़ा।