समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढ़ाती हैं।
गोपेश्वर की यात्रा
इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है।
गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पड़ाव है। इसके बाद जिस दुरूह चढ़ाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो अकल्पनीय है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढ़ने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल। यह लंबा चौड़ा घास का मैदान है जिसके ठीक सामने पहाड़ों की ऊंची चोटियों को देखने पर सर पर रखी टोपी गिर जाती है। गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांव के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है।
ल्वीटी बुग्याल
इस घुमावदार चढ़ाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ल्वीटी बुग्याल से गोपेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौड़ी नगर की टिमटिमाती लाइटों का आकर्षण भी कमतर नहीं। ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांव के लोग अपनी भेड़-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं। अगर पूरी चढ़ाई एक दिन में चढ़ना कठिन लगे तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है। यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है। यहां पर कई दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं।
रुद्रनाथ
पनार से पित्रधार होते हुए करीब दस-ग्यारह किलोमीटर के सफर के बाद यात्री पहुंचता है पंचकेदारों में चौथे केदार रुद्रनाथ में। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढ़े किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाता है और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है।