24 Apr 2024, 09:57:59 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मध्य प्रदेश में स्तिथ महाकाल की नगरी उज्जैन में कई महत्वपूर्ण मंदिरों के अलावा नगर से थोड़ी दूर एक गुफा है। यह अपने भीतर रहस्यों की एक पूरी दुनिया ही समेटे हुए है। दूसरी तरफ बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध सांची है, जहां कलिंग युद्ध के बाद मर्माहत सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।

एक कथा है पुराणों में कि जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र का मंथन किया तब उसमें से कई अमूल्य चीजें प्राप्त हुई। इनमें एक अमृत कलश भी था। देवता बिलकुल नहीं चाहते थे कि इस अमृत का थोड़ा सा भी हिस्सा वे राक्षसों के साथ बांटें। देवराज इंद्र के संकेत देने पर उनका पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग निकला। राक्षस उसके पीछे-पीछे भागे। कलश पर कब्जे के लिए बारह दिनों तक हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर छलक पड़ीं। ये स्थान हैं- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। कलश से छलकी अमृत बूंदों को इन स्थानों पर स्थित पवित्र नदियों ने अंगीकार कर लिया। उज्जैन के किनारे बहने वाली शिप्रा भी इन नदियों में से एक थी।

विशाला, अमरावती, सुवर्णश्रृंगा, कुशस्थली और कनकश्रृंगा ग्रंथों और इतिहास के पन्नों में चमकती यह प्राचीन नगरी वही है जहां राजा हरिश्चंद्र ने मोक्ष की सिद्धि की थी।

जहां सप्तर्षियों ने मुक्ति प्राप्त की थी। जो भगवान कृष्ण की पाठशाला थी। भर्तृहरि की योग भूमि थी। जहां कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतलम और मेघदूत जैसे महाकाव्य रचे। विक्रमादित्य ने अपना न्याय क्षेत्र बनाया। बाणभट्ट, संदीपन, शंकराचार्य, वल्लभाचार्य जैसे संत विद्वानों ने साधना की और न जाने कितनी महान आत्माओं की यह कर्म और तपस्थली बनी। ऐसी भूमि पर कदम रखते ही कौन खुद को धन्य महसूस नहीं करेगा। मैंने जब इस धरा पर पहले-पहल कदम रखा तो एक साथ न जाने कितने भावों से एकाएक सराबोर हो गया।

महाकाल के रहस्यलोक में
उज्जैन के दक्षिण में शिप्रा नदी से थोड़ा दूर उज्जैन का खास आकर्षण यहां का महाकाल मंदिर है। यहां का ज्योतिर्लिग पुराणों में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक है। उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल वन में स्थित महाकाल की महिमा प्राचीन काल से ही दूर-दूर तक फैली हुई है। महाकाल का यह मंदिर न जाने कितनी बार बना और टूटा। आज का महाकाल का यह मंदिर आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व राणोजी सिंधिया के मुनीम रामचंद्र बाबा शेण बी ने बनवाया था। इसके निर्माण में मंदिर के पुराने अवशेषों का भी उपयोग हुआ। रामचंद्र बाबा से भी कुछ वर्ष पहले जयपुर के महाराजा जयसिंह ने द्वारकाधीश यानी गोपाल मंदिर यहां बनवाया था। यहां श्रीकृष्ण की चांदी की प्रतिमा है। यहां तक कि मंदिर के दरवाजे भी चांदी के बने हुए हैं। कहा जाता है कि मंदिर का मुख्य द्वार वही है जिसे सिंधिया ने गजनी से लूट में हासिल किया था। इसके पहले यह द्वार सोमनाथ की लूट के दौरान यहां से गजनी पहुंचा था।

चिता भस्म से पूजन
महाकालेश्वर का वर्तमान मंदिर तीन भागों में बंटा है। सबसे नीचे तलघर में महाकालेश्वर (मुख्य ज्योतिर्लिग), उसके ऊपर ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर नाग चंदेश्वर मंदिर है। नाग चंदेश्वर मंदिर साल में सिर्फ एक बार खुलता है, नागपंचमी के अवसर पर। महाकालेश्वर की यह स्वयंभू मूर्ति विशाल और नागवेष्टित है। शिवजी के समक्ष नंदीगण की पाषाण प्रतिमा है। शिवजी की मूर्ति के गर्भगृह के द्वार का मुख दक्षिण की ओर है। तंत्र में दक्षिण मूर्ति की आराधना का विशेष महत्व है। पश्चिम की ओर गणेश और उत्तर की ओर पार्वती की मूर्ति है। शंकर जी का पूरा परिवार यहीं है।

726 दीपों का स्तंभ
बड़े गणेश के मंदिर से शिप्रा नदी की तरफ जाने के रास्ते में मंदिर से बीस कदम दूर हरसिद्धि देवी का मंदिर है। हरसिद्धि देवी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य थीं। किंवदंती है कि सम्राट विक्रमादित्य ने हरसिद्धि को ग्यारह बार अपना मस्तक काटकर चढ़ाया और हर बार फिर मस्तक जुड़ गया। मंदिर के चारों तरफ चार द्वार हैं। मंदिर के दक्षिण में एक बावड़ी है। मंदिर में अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति भी है। मंदिर के बीच में एक गुफा में साधक साधना करते हैं। मंदिर के समक्ष दो ऊंचे विशाल दीप स्तंभ हैं, जिन पर 726 दीपों के स्थान बनाए हुए हैं। नवरात्रि के समय यहां दीप जलाए जाते हैं, जिनका भव्य दृश्य इस मंदिर को आलोकित करता है।

शिप्रा
हरसिद्धि देवी और श्रीराम मंदिर के पीछे उज्जैन नगर के पूर्वी छोर पर शिप्रा नदी बहती है। महाकवि कालिदास और बाणभट्ट ने शिप्रा के गौरव और गरिमा का गुणगान अपने काव्य में किया है, पर आज की शिप्रा दयनीय हालत में है। भक्तगण इसकी स्वच्छता का बहुत कम ध्यान रखते हैं। उज्जैनवासियों के लिए शिप्रा जीवनदायिनी है। उन्हें दैनिक उपयोग के लिए जल की आपूर्ति शिप्रा से ही की जाती है। शिप्रा तट पर विशाल घाट, कई मंदिर और छतरियां बनी हुई हैं। यहां जगह-जगह पुजारी भक्तों को पूजा कराते नजर आते हैं। दूर-दूर तक कई घाट बने हुए हैं जिनमें रामघाट, नृसिंह घाट, छत्री घाट, सिद्धनाथ घाट, गंगा घाट और मंगलनाथ घाट प्रसिद्ध और पौराणिक महत्व वाले हैं। नदी के दूसरी ओर कुछ अखाड़े हैं जहां साधु रहते हैं। सिंहस्थ का पर्व दोनों तटों पर लगता है।

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