23 Apr 2024, 11:37:15 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

4पुरातन काल से ही रत्नों का प्रचलन रहा है। मानिक मोती, मूंगा, पुखराज, पन्ना, हीरा और नीलम ये सब मुख्य रत्न हैं। इनके अतिरिक्त और भी रत्न हैं जो भाग्यशाली रत्नों की तरह पहने जाते हैं। इनमे गोमेद, लहसुनिया, फिरोजा, लाजवर्त आदि का भी प्रचलन है। रत्नों में सात रत्नों को छोडक़र बाकी को उपरत्न समझा जाता है।

 

सभी रत्न नौ ग्रहों के अंतर्गत आते हैं। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू, केतु यह सब ग्रह जन्मकुंडली के अनुसार व्यक्ति को शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं। जन्म कुंडली चक्र में 12 स्थान होते हैं जिन्हें घर या भाव भी कहा जाता है। बारह भावों में सूर्यादि ग्रहों की स्थिति से निर्धारण किया जा सकता है कि कौन सा रत्न व्यक्ति को सर्वाधिक लाभ देगा। अनुभव के आधार पर पाया गया है कि कोई ग्रह शुभ है और उसका पूरा फल नही मिल रहा हो तो उस ग्रह से सम्बंधित रत्न धारण करना रहता है। इससे हम पाते हैं कि एक ही रत्न ने हमारे जीवन को नई दिशा दे देता है।

 

मानिक मोती, मूंगा, पुखराज, पन्ना, हीरा और नीलम, लहसुनिया और गोमेद ये सब नौ ग्रहों के प्रतिनिधित्व के आधार पर पहने जाते हैं। हर रत्न कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य दिखाता है परन्तु यह सौ फीसदी सच नहीं है। जन्मकुंडली में कुछ ग्रह आपके लिए शुभ होते हैं और कुछ अशुभ परन्तु कुछ ग्रह सम या माध्यम भी होते हैं जिनका फल उदासीन सा रहता है। ऐसे ग्रहों का न तो दुष्फल होता है न ही कोई विशेष फायदा ही मिल पाता है, यदि कुंडली में कोई ग्रह सम हैं तो उस ग्रह विशेष का रत्न पहनने से न तो कोई फायदा होगा और न ही कोई नुकसान होगा।

 

ज्योतिषाचार्य अशोक ने बताया कि कुछ लोग कहते हैं कि एक व्यक्ति का रत्न दुसरे को नहीं पहनना चाहिए यह बात भी गलत साबित होते देखी गयी है, यदि कोई रत्न विशेष लाभ नहीं दे रहा तो वह रत्न किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में अपनी जगह अवश्य बना लेगा जिसके लिए वह रत्न फायदेमंद हो। कुछ लोगों का मानना है कि कुछ साल प्रयोग करने के बाद बाद गंगाजल से रत्न को धो लेने से वह फिर से प्रभाव देने लग जाता है। यह बात भी गलत है। पुराने रत्न का केवल इतना होता है कि नतो वह फायदा करता है और न ही कुछ नुकसान।

 

कहते हैं कि रत्न यदि शरीर को स्पर्श न करे तो उसका प्रभाव नहीं होता। मूंगा नीचे से सपाट होता है और जरूरी नहीं कि ऊँगली को स्पर्श करे फिर बिना स्पर्श किये भी उसका पूरा प्रभाव देखने को मिलता है। रत्न का परिक्षण करते समय रत्न को कपड़े में बांध कर शरीर पर धारण किया जाता है। यहाँ यह बात साबित होती है कि रत्न का शरीर से स्पर्श करना अनिवार्य नहीं है।

 

रत्नों के विषय में जरूरी हैं यह बातें

रत्न का वजन, चमक या आभा, काट और रंग से ही रत्न की गुणवत्ता का पता चलता है। रत्न कहीं से फीका कही से गहरा रंग, कहीं से चमक और कहीं से भद्दा हो तो उसे नहीं पहनना चाहिए। मोती, पन्ना, पुखराज और हीरा, यह रत्न ताम्बे की अंगूठी में नहीं पहनना चाहिए। बाकि रत्नों के लिए धातु का चुनाव इस आधार पर करें कि आपके लिए कौन सी धातु शुभ और कौन सी धातु अशुभ है क्योंकि लोहा ताम्बा और सोना हर किसी को माफिक नहीं होता। इसके अलावा कौन सा रत्न कौन सी ऊँगली में पहना जाता है यह बात महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे रत्न का प्रभाव दुगुना या न्यून हो सकता है।

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