19 Apr 2024, 16:01:34 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

नंदौड़के विमलनाथ दिगंबर जैन चैत्यालय में धर्म सभा को संबोधित करते हुए वैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनंदी महाराज ने जैन धर्म के तीन रत्नों के महत्व के बारे में बताया।

उन्होंने कहा कि सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान सम्यक चरित्र यह तीन रत्न है। भावसागर पार करने के लिए ये तीन रत्न आवश्यक है। त्रिगुप्तिघाटी साधु होते है। मन गुप्ति, वचन गुप्ति काय गुप्ति। मन, वचन काय की प्रवृत्ति को रोकने से आत्मा की रक्षा होती है।

मन से रागादि निवृत्ति मनोगुप्ति, असत्य आदि से निवृत्त होना या मौन रहना वचन गुप्ति और हिसांदि कार्यो से निवृत्त होना कायगुप्ति है। अशुभ कर्मो से बचना संयत की गुप्तियां है।

आचार्य ने पूजा, पाठ, जप, तप, योग, ध्यान, तीर्थ यात्रा, दस धर्म और पंच रत्न के पालन को आत्मा के निर्मल होने के बाद मोक्ष की प्राप्ति का साधन बताया।

इस अवसर पर मुनि सुविज्ञसागर, आध्यात्मनंदी, आर्यिका सुवात्सल्यमति माताजी, क्षुल्लिका सुविक्षमति, ब्रम्हचारी सोहनलाल, विजयलक्ष्मी जैन, प्रवीण जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

गलियाकोट- चीतरी स्थित चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर में बुधवार को धर्म सभा में आचार्य गुप्तिनंदी महाराज ने घर में अनुपयोगी सामान नहीं रखने की हिदायत देते हुए कहा कि घर में टूटा-फूटा अनुपयोगी सामान गंदगी मानसिक शारीरिक पीड़ा का संकेत होते है।

उन्होंने कहा कि वास्तु शास्त्र के आधार पर बनाया गया निवास स्थान और उसमें वस्तुएं रखने के स्थान भी वास्तुशास्त्र के आधार पर बने होने से शांति समृद्धि आती है।

ब्रम्हचारी संध्या दीदी ने बताया कि 13 अक्टूबर से शुरू होने वाले नवग्रह शांति विधान में पहले दिन निकलने वाली घट यात्रा में महिलाओं की कलश सजाओं प्रतियोगिता होगी।

उन्होंने सबसे सुंदर कलशधारी महिला को सुलक्षणा महिला मंड़ल की ओर से पुरस्कृत करने की जानकारी देते हुए कलश यात्रा में स्टील लौहे के कलश नहीं लाने का अनुरोध किया।
 

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