बहुत से रत्नों पर तीव्र प्रकाश या रंग का प्रभाव ऐसा दिखाई देता है कि जिनका सम्बन्ध न तो उनकी रासायनिक बनावट से होता है और न ही उनमें उपस्थित अशुद्धियों से, जो रंगीय आभा युक्त होती हैं। ये रंग प्रभाव मात्र रोशनी के वर्तनांक में अवरोध के कारण पैदा होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं
इन्द्रधनुषीपन-अगर रत्नों के अन्दर दरारों और बेमेल लहरों में रोशनी डाली जाए तो वह कई कोणों में फैल जाती है। इसके परिणामस्वरूप रत्न के प्रभावमण्डल में इन्द्रधनुष जैसी आभा बिखर जाती है।
दूधियापन- इस प्रकार की चमक मूनस्टोन श्रेणी के उन रत्नों में नजर आती है, जिनको कैविकोन कट में तराशा जाता है।
बिल्लौरीपन- जब किसी रत्न को कैविकोन कट में तराशा जाता है तो रत्न के भीतर से परावर्तित होता प्रकाश बिल्ली की आँख जैसा प्रतीत होता है।
झिलमिलापन- इसमें रत्नों की ठोस पृष्ठभूमि पर झिलमिलाने वाला बहुरंगी प्रकाश नजर आने लगता है।जगमगाहट- जिन रत्नों में भौतिक या रासायनिक प्रक्रिया के फलस्वरूप जरा सी रोशनी के प्रभाव से ढेर सारी जगमगाहट पैदा हो जाए, उनको उज्ज्वल प्रकाश के वर्तनांक श्रेणी का रत्न माना गया है।
परन्तु इसमें जगमगाहट ताप उत्सर्जन सम्मिलित नहीं है। इन्फ्र-रेड किरणें डालने पर रत्नों को जाँचने-परखने से जो परिणाम निकलते हैं, वे सिद्धान्त रूप से प्रतिदीप्ति कहलाते हैं। इस प्रक्रिया से रत्न की रोशनी या जगमगाहट देखी जाती है।ओपल रंगी- आमतौर से नीली सूक्ष्म तरंगों के परावर्तन के कारण सामान्य ओपल रत्नों में नीली या मुक्ताभ आभा दिखाई देती है।
बहुरंगी- ऐसे रंगों की छटा ओपल श्रेणी के रत्नों से प्रस्फुटित होती है। पत्थर को घुमाने या हिलाने-डुलाने से बहुत सारे रंगों की वर्ण आभा प्रभावमण्डल में बिखर जाती है।
दोगलापन- धात्विक चमक खासतौर से लेब्रेडोराइट और स्पेक्ट्रोलाइट श्रेणी के रत्नों में पाई जाती है। इन रत्नों की प्रधान वर्ण आभा हरे व नीले रंग में होती है। परन्तु उसका समूचा दृश्य-पटल रंग-बिरंगा होना जरूरी है।