लखनऊ। इस दिनों उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद लगातार अवैध बूचड़खाने बंद कराए जा रहे हैं। प्रशासन की सख्ती से अवैध बूचड़खाने बंद होते ही मीट की सप्लाई में तेजी से गिरावट आ गई है। इस गिरावट का असर यह हुआ है कि लखनऊ के मशहूर टुंडे कबाबी के कबाब खाने वालों को मायूसी का सामना करना पड़ रहा है। पिछले 110 सालों में यह पहली बार हुआ है, जब भैंसे के मीट की कमी होने की वजह से बुधवार को टुंडे कबाबी की दुकान बंद रही है, क्योंकि कबाब बनाने के लिए भैंसे का मीट ही नहीं मिल रहा है।
अधिकतर बूचड़खानें हैं अवैध आपको बता दें कि सरकार की सख्ती अवैध बूचड़खानों पर की जा रही है और इसकी वह से मीट की कमी होने का मतलब साफ है कि अवैध बूचड़खाने धड़ल्ले से चल रहे थे। भाजपा ने अपने चुनावी वादों में बूचड़खाने बंद कराने का वादा किया था और 15 मार्च को शपथ ग्रहम के बाद से ही सरकार ने इस पर अमल करना भी शुरू कर दिया है। टुंडे कबाबी के अलावा भी बहुत सी दुकानें नहीं खुलीं। बिल्लौचपुरा, नक्खास और पुराने लखनऊ के दूसरे इलाकों में भी मीट बेचने की दुकानें बंद रहीं।
1905 में खुली थी दुकान टुंडे कबाब की दुकान 1905 में अकबरी गेट इलाके में खुली थी। यूं तो टुंडे कबाब की दुकानें लखनऊ के अलावा भी कई जगहों पर खुली हैं, लेकिन अकबरी गेट वाली दुकान सबसे पुरानी है और काफी मशहूर भी। इस दुकान पर न सिर्फ देसी बल्कि विदेशी लोग भी आते हैं। इस दुकान पर सिर्फ कबाब और पराठा मिलता है, इसकी वजह से यह दुकान इतिहास में पहली बार बंद रही। वहीं दूसरी ओर, नजीराबाद में टुंडे कबाब की दुकान खुली रही, क्योंकि वहां पर बकरे और मुर्गे के मांस की डिश भी मिलती हैं।