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सभी भाषाओं का हो सम्मान : विपक्ष

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 13 2019 1:44AM | Updated Date: Dec 13 2019 1:44AM
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नई दिल्ली। विपक्षी सदस्यों ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना को लेकर सरकार पर छद्म मंशा से काम करने का आरोप लगाते हुये आज लोकसभा में कहा कि विश्वविद्यालय के गठन से उनका विरोध नहीं है, लेकिन सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिये। कांग्रेस के बेन्नी बेहनान ने केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय विधेयक 2019 पर चर्चा की शुरुआत करते हुये कहा कि भाषा को धर्म के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिये और सभी भाषाओं का सम्मान होना चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित केंद्रीय  विश्वविद्यालय का इस्तेमाल शिक्षा के भगवाकरण के लिए नहीं होना चाहिये।
 
उसकी धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की रक्षा की जानी चाहिये और वहाँ आरक्षण संबंधी नीतियों का पूरी तरह पालन किया जाना चाहिये। श्री बेहनान ने कहा कि संस्कृत में ज्ञान का काफी भंडार है जिसे सामने लाने की जरूरत है। भारतीय जनता पार्टी के सत्य पाल सिंह ने कहा कि भारतीय संस्कृति का अस्तित्व संस्कृत के कारण ही है। जब तक इस देश में संस्कृत का पठन-पाठन होता रहा हम विश्वगुरु रहे। संस्कृत सारी भाषाओं की जननी है। अंग्रेजी में भी संस्कृत से शब्द गये हैं। इतनी समृद्ध भाषा दुनिया में दूसरी नहीं है। द्रविड़ मुनेत्र कषगम् के ए. राजा ने कहा कि उनकी पार्टी या स्वयं वह किसी भाषा कि खिलाफ नहीं हैं, लेकिन किसी एक भाषा को अन्य भाषाओं पर तरजीह नहीं दी जा सकती। उन्होंने सत्ता पक्ष के सदस्यों के इस तर्क को खारिज कर दिया कि तमिल तथा दक्षिण भारत की अन्य भाषायें भी संस्कृत से निकली हैं।
 
पाँचवीं बार लोकसभा के लिए चुने गये राजा ने सदन में पहली बार तमिल में बोलते हुये कहा कि संस्कृत भारतीय-यूरोपीय भाषा समूह में से एक है जबकि द्रविड़ भाषा समूह उससे अलग हैं। राजा ने कहा कि सरकार ने कहा है कि वह केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के जरिये भारतीय दर्शन का प्रसार करना चाहती है तो क्या भारतीय दर्शन सिर्फ संस्कृत में ही है। उन्होंने आरोप लगाया कि इसके पीछे सरकार की छद्म मंशा है। तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने विधेयक का समर्थन करते हुये कहा कि सभी विश्वविद्यालयों में कम से कम तीन साल के लिए संस्कृत पढ़ना अनिवार्य किया जाना चाहिये और देश के हर  उच्च तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत का एक विषय होना चाहिये। रॉय ने कहा कि जब एक मुसलमान के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्राध्यापक होने का विरोध होता है तो उन्हें दु:ख होता है। उन्होंने संस्कृत के साथ एक तमिल विश्वविद्यालय बनाने की भी माँग की। 
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