नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मेडिकल कॉलेजों में सविंदा चिकित्सकों के मामले में मंगलवार को सुनवाई करते हुए सरकार, भारतीय चिकित्सा परिषद और सर्विस सलेक्शन बोर्ड से तीन सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को होगी। मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार मोहित गोयल, शेखर पाल और अन्य 30 चिकित्सकों ने न्यायालय में दायर अपनी याचिका में कहा है कि वर्ष 2015 में चिकित्सा चयन बोर्ड की ओर से दून मेडिकल कॉलेज में चिकित्सकों के नियमित चयन के लिए प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। उनका चयन कर लिया गया परन्तु बोर्ड ने उनको नियमित सेवा के बजाय संविदा चिकित्सक के रूप में रखा।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को यह भी बताया गया कि उनको स्थायी सेवा का लाभ देने के निर्देश दिये जायें। उनका तर्क था कि वे विगत कई वर्षों से एक ही मेडिकल कॉलेज में सविंदा के रूप में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने सरकार की शर्तों का पालन किया है। अदालत ने अपने निर्देश यह भी बताने को कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार छात्रों की संख्या के आधार पर दस प्रतिशत से अधिक संविदा चिकित्सकों की नियुक्ति हो सकती या नहीं? याचिकाकर्ता कि ओर से कहा गया है कि सरकार ने कई गुना अधिक संविदा चिकित्सकों की नियुक्ति कर दी है। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा है कि विधिवत चयन होने के बाद सविंदा और नियमित चिकित्सकों के वेतन में अंतर क्यों है।