नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की आज 24वें दिन हुई सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि पूरे जन्मस्थान को पूजा की जगह बताकर मुस्लिम पक्ष के दावे को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष अपनी जिरह आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ पूजा के अधिकार पर जो दलीलें रखी गई हैं, उससे लगता है कि वेटिकन पर केवल ईसाइयों का और मक्का पर केवल मुसलमानों का हक है। पूरे जन्मस्थान को पूजा की जगह बताकर मुस्लिम पक्ष के दावे को कमजÞोर करने की कोशिश की जा रही है।’’ मुस्लिम पक्षकार ने ‘जन्मस्थान’ की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जन्मस्थान 'ज्यूरिस्ट पर्सन' यानी न्यायिक व्यक्ति नहीं हो सकता।
धवन ने कहा कि जब जमीन यानी जन्मस्थान ही देवता हो गयी तो फिर किसी और का दावा ही नहीं बन सकता, इसलिए जन्मस्थान को इस उद्देश्य से पार्टी बनाया गया है। उन्होंने दलील में यह भी कहा कि 'जन्मस्थान' को सदियों से विवादित स्थान पर होने की दलील देकर यह कोशिश की गई है कि उस पर न तो कानून के सिद्धांत 'लॉ ऑफ लिमिटेशन' लागू हो और न ही 'एडवर्स पोजेशन।’ लॉ ऑफ लिमिटेशन के तहत किसी दीवानी मुकदमे में वाद दायर करने की समय सीमा तय होती है जबकि 'एडवर्स पोजेशन' का मतलब होता है प्रतिकूल कब्जा। इससे पहले न्यायालय ने अयोध्या विवाद की सुनवाई के सीधे प्रसारण के मसले पर कोर्ट रजिस्ट्री को नोटिस जारी करके इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है। संविधान पीठ ने रजिस्ट्री ऑफिस से रिपोर्ट मांगी है कि अगर अभी आदेश दिया जाये तो कितने दिनों में सीधे प्रसारण की शुरुआत की जा सकती है।
पीठ ने कहा कि वह इस रिपोर्ट के बाद ही लाइव स्ट्रीमिंग पर फैसला लेगी। गौरतलब है कि अयोध्या विवाद की सुनवाई के सीधे प्रसारण संबंधी याचिका पूर्व संघ विचारक के एन गोंविदाचार्य ने की है। उन्होंने याचिका में यह भी कहा है कि अगर अयोध्या मामले की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करना संभव नहीं हो तो कम से कम इस सुनवाई की ऑडियो रिकार्डिंग या लिपि तैयार की जानी चाहिए।