लंदन। लंदन ओलंपिक में मेडल से चूकी ज्वाला गुट्टा आज भी उस हार से उबर नहीं पाई हैं। लेकिन अब ज्वाला का लक्ष्य अन्य भारतीय खिलाड़ियों की तरह रिओ ओलंपिक्स 2016 से मेडल लाना है। हालांकि मेडल की तैयारी में जुटी ज्वाला गुट्टा बैडमिंटन में मिल रही सुविधाओं से नाखुश हैं।
ज्वाला कहती हैं, "भारत में डबल्स बैडमिंटन के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। जैसी सिंगल्स खिलाड़ियों को सुविधाएं मिलती हैं वैसी हमें नहीं मिलती। हालात इतने बुरे हैं कि अपनी शटलकॉक के लिए पैसे खुद देने पड़ते हैं, बाकी सुविधाएं तो दूर की बात।"
टॉप्स स्कीम में नाम नहीं
रिओ ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए भारत सरकार ने टॉप्स (ळडढर) स्कीम का ऐलान किया है। टॉप्स (ळडढर) का मतलब है - टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम - इस स्पेशल स्कीम के तहत भारतीय बैडमिंटन संघ को 30 करोड़ रुपये का बजट मिला है।
बैडमिंटन एसोसिएशन ये रकम चुनिंदा खिलाड़ियों की ओलंपिक तैयारी पर ख़र्च करेगा। ये वो खिलाड़ी होंगे जिनसे एसोसिएशन को उम्मीद है कि वो ओलंपिक से मेडल लाने में सफल होंगे। लेकिन इस सूची में ज्वाला और उनकी जोड़ीदार अश्विनी पोनप्पा का नाम नहीं है।
'अच्छे कोच के लिए भीख'
बैडमिंटन में सिंगल्स और डबल्स खेल के लिए अलग-अलग कोच रखे जाते हैं। भारत की डबल्स बैडमिंटन टीम का कोई कोच नहीं रहा है। इस बारे में बैडमिंटन सिंगल्स खिलाड़ी जैसे साइना नेहवाल और के श्रीकांत का उदाहरण देते हुए ज्वाला गुट्टा ने कहा, "सिंगल्स के खिलाड़ियों के पास सब कुछ है - कोच, सुविधाएँ, ट्रेनर, फिजियो और ये सब होना भी चाहिए क्योंकि उन्होंने बड़े खिताब जीते हैं, पर हम भी कम नहीं हैं।"