23 Apr 2024, 22:51:47 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

संत ऑगस्टिन सत्य की खोज में अपना सारा सुख-चैन खो बैठे थे। परमात्मा को पाने की चाहत में उन्हें पता ही नहीं चलता था कि दिन और रात कब बीत जाते। शास्त्र, शब्द और विचारों के बोझ तले वह दब से गए थे। एक रोज सुबह-सुबह वह सागर तट पर अकेले घूमने निकले। वहां उन्होंने एक लड़के को खड़ा देखा। उसके हाथ में एक छोटी-सी प्याली थी और वह किसी चिंता में डूबा था। संत ने उससे पूछा, 'तुम यहां क्या कर रहे हो?' लड़के ने कहा, 'पहले आप बताएं कि आप यहां क्या कर रहे हैं? संभव है, जो मेरी चिंता है वही आपकी भी हो। लेकिन आपकी प्याली कहां है?'
 
 
 
प्याली की बात सुनकर ऑगस्टिन को हंसी आ गई। उन्होंने कहा मैं सत्य की खोज में हूं और उसी कारण चिंतित हूं। वह बच्चा बोला, मेरी चिंता का कारण यह है कि मैं इस प्याली में सागर को भरकर घर ले जाना चाहता हूं। लेकिन सागर है कि इस प्याली में आ नहीं रहा। जब संत ने यह सुना, तो उन्हें अपनी बुद्धि की प्याली भी दिखाई दी और सत्य का सागर भी। वे हंसने लगे और बोले, 'मित्र, सचमुच में हम दोनों बालक ही हैं, क्योंकि हम सभी किसी न किसी सागर तट पर अपनी बुद्धि की प्याली लेकर खड़े हैं और उसमें सत्य का सागर भरना चाहते हैं।'
 
 
 
किसी के पास बड़ी प्याली है तो किसी के पास छोटी। कोई बहुत विद्वान है, तो कोई कम पढ़़ा-लिखा। सागर उसी को मिलता है, जो अपनी प्याली भरकर घर ले जाने के बजाय उसे सागर में ही छोड़ दे। जब बुद्धि रूपी प्याली सागर में मिल जाएगी तो सत्य स्वयं सामने आ जाएगा। ऑगस्टिन की तरह हम भी सोचें- मैं भी एक बूंद हूं और अपने पिता सागर से अर्थात परमेश्वर से मिलना चाहता हूं। 
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