29 Mar 2024, 16:45:28 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

कृष्ण भक्ति धारा को माधुर्य के साथ प्रवाहित करने का श्रेय भक्त कवि सूरदास को जाता है। विश्वास है कि उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम के एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में संवत 1535 वैशाख शुक्ल पंचमी को हुआ था। लोक विश्वास के अनुसार वे जन्म से ही नेत्रहीन थे और ईश-भक्ति में लीन रहते थे। सूरदास ईश-भक्ति के लिए एकांत चाहते थे, लेकिन उन्हें एकांत नहीं मिल पाता था।

अत: उन्होंने सीही गांव को त्याग कर ब्रज जाने की योजना बनाई। सीही में श्रीप्रकाश नाम का एक जुलाहा उनका भक्त हो गया था, वह उन्हें ब्रज ले आया। वहां उन्होंने गऊ घाट पर रहने का निर्णय किया। गऊघाट आने पर उनके जीवन का रूप ही बदल गया। काव्य और संगीत के प्रति रुझान विकसित हुआ। वे पद लिखते और इकतारे पर गाते।

संवत् 1560 को महाप्रभु श्रीवल्लभाचार्य अपने निवास स्थान अड़ैल से ब्रज आए। जब वे आचार्य के सम्पर्क में आए तो सखा भाव, वात्सल्य और माधुर्य की पद रचना करने लगे। उस वक्त तानसेन बादशाह अकबर के नौ रत्नों में से एक थे। उन्होंने दरबार में सूरदास का पद गाया। पद इतना मनोहारी और हृदयस्पर्शी था कि अकबर की इच्छा हुई कि वे पद लेखक सूरदास से मिलें।

संवत् 1623 में तानसेन अकबर को लेकर सूरदास से मिलने के लिए आए। अकबर ने कहा- मेरी प्रशंसा में कोई पद गाओ। सूरदास ने कहा कि वे केवल कृष्ण के हैं और कृष्ण उनके हैं। इसके अतिरिक्त कोई प्रशंसा का पात्र नहीं है।
 

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