29 Mar 2024, 05:49:14 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-राजीव रंजन तिवारी
विश्लेषक
 
वर्ष 2014 के आखिर में एक अंतरराष्ट्रीय चर्चित मीडिया ग्रुप के इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) ने एक शोध किया था, जो यह बता रहा था कि यूरोपीय देशों का राजनीतिक भविष्य कैसा होगा। दरअसल, यह शोध इस परिप्रेक्ष्य में था कि कुछ देशों में सत्ता के विरुद्ध आवाज उठाने वालों के खिलाफ दमनात्मक कदम उठाए गए थे। साथ ही अमीरों व गरीबों के बीच बढ़ती खाई को भी बड़े रोचक अंदाज उस शोध में उल्लेखित किया गया था। शोध का निष्कर्ष था कि फ्रीडम आॅफ स्पीच (अभिव्यक्ति की आजादी) और पीड़ित-प्रताड़ित लोगों के प्रति यदि शासकीय सहानुभूति प्रदर्शित नहीं होती है तो नि:संदेह परिणामघातक होंगे। शोध में सत्ताधारी दलों के लिए नए विचारों की जरूरत पर बल दिया गया था।
 
 
इस तथ्य का उल्लेख इसलिए करना पड़ रहा है कि पिछले दिनों भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास (चेन्नई) ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों, कार्यशैली व योजनाओं की आलोचना करने वाले छात्र संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया है। साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी के मुद्दे पर हाल ही में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को भी बताना यहां समीचीन प्रतीत हो रहा है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था अपने विचारों को किसी भी माध्यम से दूसरों के सामने रखना ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 66-ए को निरस्त (खत्म) कर लोगों को बिना भय के अपने विचारों को सार्वजनिक रूप से सबके सामने रखने के लिए आजाद कर दिया। इस स्थिति में मद्रास आईआईटी द्वारा उठाए गए कदम को अभिव्यक्ति की आजादी का कुरूप चेहरा बताने में संकोच तो नहीं ही होना चाहिए। उस चेहरे को पहचान कर सचेत रहना भी जरूरी है। गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करने पर बैन किए गए आईआईटी मद्रास में आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्कल नाम के छात्र संगठन के समर्थन में 16 छात्र संगठनों ने मिलकर फैसले का विरोध किया है।
 
 
सभी संगठनों ने यह मांग कर डाली है कि संगठन के ऊपर से बैन हटाया जाए। इस मसले पर कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अभिव्यक्ति की आजादी के खतरे को लेकर चिंता व्यक्त की है। सभी संगठनों को कॉर्डिनेट कर रहे यू थिलागावथी ने कहा कि आईआईटी-एम को स्टूडेंट ग्रुप के कामों में दखल नहीं देना चाहिए, यह सीधे तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है। वहीं मान्यता रद्द करने के विरोध में आईआईटी मद्रास के बाहर वामपंथी छात्र संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन आॅफ इंडिया (डीवाईएफआई) ने प्रदर्शन किया। एक सड़क को बंद करने का प्रयास करने के लिए कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया गया। पुलिसकर्मियों द्वारा दूर हटाए जाने के बावजूद डीवाईएफआई के सदस्यों ने मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ नारेबाजी की। संगठन के सदस्यों की पुलिस के साथ जोरदार तकरार हुई और उन्होंने आईआईटी-एम के मैनेजमेंट के खिलाफ भी नारेबाजी की। उन्होंने आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्कल की मान्यता समाप्त करने के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की। डीवाईएफआई के एक कार्यकर्ता ने कहा कि तमिलनाडु में किसी भी एजेंडे को लागू करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इससे स्पष्ट हो रहा है कि छात्र और समान विचारधारा वाले देश के लोगों में इस फैसले के खिलाफ उबाल और गुस्सा है। सोशल एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय ने भी छात्र संगठन को समर्थन देते हुए, ईमेल लिखा है। अरुंधति रॉय ने आंबेडकर- पेरियार स्टडी सर्कल का समर्थन करते हुए लिखा है कि मैं इन छात्रों व इनके संगठनों का भरपूर समर्थन करती हूं।
 
 
एपीएससी का गठन एक डिस्कसन फोरम के तौर पर 14 अप्रैल, 2014 को किया गया था। शिकायत में द्रविड़ यूनिवर्सिटी के प्रो. आरवी गोपाल का 'आंबेडकर की प्रासंगिकता' विषय पर दिए गए भाषण का हिस्सा था। इसमें उन्होंने मोदी सरकार को उद्योपतियों की सरकार बताते हुए केंद्र सरकार के कई बिलों की आलोचना की थी। इससे अलग ‘शहीद भगतसिंह विचार मंच’ और स्त्री मुक्ति को समर्पित संगठन ‘स्त्री मुक्ति लीग’ इलाहाबाद में कुछ छात्र दो पत्रिकाएं पिछले दो वर्षों से निकाल रहे हैं। पत्रिकाओं को निकालने वाले छात्रों को कुछ संगठनों द्वारा धमकियां दी जा रही हैं। इसका कारण यह है कि इन पत्रिकाओं में संघ परिवार की साम्प्रदायिक फासीवादी हरकतों पर टिप्पणियां छप रही हैं।
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