25 Apr 2024, 18:02:41 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

महात्मा गौतम बुद्ध से एक व्यक्ति ने कहा, मैं ईश्वर को नहीं मानता। आपकी क्या राय है? बुद्ध बोले- तुम गलत हो। संसार में ईश्वर के अलावा कुछ और सत्य है ही नहीं। कुछ दिन बाद दूसरे व्यक्ति ने प्रश्न किया- प्रभो। ईश्वर में मेरी बड़ी श्रद्धा है। क्या मैं सही नहीं हूं? बुद्ध बोले- ईश्वर के होने की बात असत्य है, इसलिए उसे मानने का प्रश्न ही नहीं उठता। यह सुन बुद्ध का प्रिय शिष्य आनंद सोच में पड़ गया कि आखिर बुद्ध कहना क्या चाहते हैं। इस बीच एक शिष्य ने तथागत से पूछा- सही-सही बताइए, ईश्वर है या नहीं? बुद्ध ने प्रश्न को अनसुना कर दूसरे विषय पर बात जारी रखी। शिष्य कुछ देर उत्तर की प्रतीक्षा कर चला गया।
 
 
आनंद ने पूछा- देव, कभी आप कहते हैं, ईश्वर है, तो कभी कहते हैं नहीं है और अभी-अभी इस बारे में जब हमारे मित्र ने वास्तविकता जाननी चाही, तो आपने उत्तर ही नहीं दिया। तथागत बोले- मैं उन लोगों की मान्यता को तोड़ देना चाहता था। जो नास्तिक होता है, उसकी आत्मा परतंत्र होती है। इसलिए मैंने उससे कहा कि ईश्वर है, ताकि उसे ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास हो। दूसरे व्यक्ति की इस मान्यता को भी कि ईश्वर का अस्तित्व है, मैं दूर करना चाहता था। जिससे वह अपनी धारणा की जंजीरों से मुक्त हो और सत्य को जानने की स्वयं पहल करे। रहा तीसरा व्यक्ति, तो उसका स्वयं का कोई मत न था। मेरी इच्छा थी कि वह जानने का प्रयास करे कि ईश्वर सचमुच है या नहीं। अलग-अलग उत्तर देने का उद्देश्य यही था कि वे अपनी मान्यता में न बंधे और स्वयं सत्य तक पहुंचें।
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