26 Apr 2024, 03:30:17 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

सूर्य ही मनुष्य के इस जीवनचक्र की धुरी हैं। शरीर सूर्य के कारण सक्रिय होता है और मन चंद्रमा के कारण सक्रिय होता है। चंद्रमा की घटती हुई कलाओं का असर मानव के मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। पूर्णिमा के बाद चांद घटने लग जाता है। तत्वचिंतक और विचारशील व्यक्तियों ने यह महसूस किया है कि जैसे-जैसे चंद्रमा की कलाएं घटती जाती हैं, वैसे-वैसे मानव-मन में उदासी, दुख, चिंताएं, परेशानी, विक्षिप्तता आदि उलझनें बढ़ने  लगती हैं।
 
 
चंद्रमा के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है। बहुत ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं और बहुत गहराई में गिरती हैं। पूर्णिमा के दिन लहरों का यह उत्पात सबसे ज्यादा होता है। अगर चंद्रमा के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे उठ सकते हैं, जो आगे तूफान में बदल सकते हैं तो ख्याल रखना कि तुम्हारे शरीर में भी 70 प्रतिशत जल ही है। अगर चंद्रमा की किरणों का इतना गहरा प्रभाव समुद्र में आ सकता है तो क्या उनका प्रभाव आपके शरीर पर नहीं आ सकता। चंद्रमा को मन का देवता कहा जाता है और सूर्य को शरीर का। शरीर को रोग-रहित रखने के लिए, अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्यदेव से प्रार्थना की जाती है। हमारा शरीर सूर्य के साथ बहुत गहराई से संयुक्त है। इसी कारण ऋषियों ने यह सुझाव दिया कि सूर्य देवता शरीर के मालिक हैं, इसलिए सूर्य के उदय होने से पहले ही हाजिरी भरो। मान लो आपने अपने पूज्य गुरुदेव को घर पर आमंत्रित किया है। तो जरा सोचो कि क्या सम्भव है कि गुरु घर पर आएं और तुम उनके स्वागत के लिए घर में उपस्थित ही न हो? सूर्य देवता इस शरीर के स्वामी हैं, इस देह के गुरु हैं, इस शरीर के नाथ हैं तो उनके आकाश में उपस्थित होने से पहले ही तुम्हें उनका स्वागत करने के लिए अच्छी तरह से तैयार नहीं हो जाना चाहिए?
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