प्रथम स्तर पर मन, ज्ञान का आधार है। मन क्या है? मानव संरचना बहुकोशीय है। मानव मन के तीन भाग हैं। प्रथम है सामूहिक एककोशीय मन, द्वितीय है सामूहिक बहुकोशीय मन और तृतीय है उसका अपना मन। इन तीनों को मिला कर मानव मन है। जिस प्राणी में बहुकोशीय मन जितना विकसित रहता है, वह प्राणी उतना ही विकसित होता है। मनुष्य का अपना मन, उसका एककोशीय मन और उसका बहुकोशीय मन मिल कर ही सम्पूर्ण मानव अस्तित्व है।
सांसारिक ज्ञान अपने प्रथम स्तर पर भौतिक-मानसिक होता है और इसके बाद मानसिक। जब इस ज्ञान को भौतिक जगत में कार्यान्वित किया जाता है, तब यह मानसिक-भौतिक होता है। इस भौतिक-मानसिक ज्ञान का इस भौतिक जगत में बहुत कम मूल्य है, किन्तु इसका मूल्य बदलते रहता है। जो सिद्धांत आज पसंद किया जाता है, वह कल बदल जाता है। तब यथार्थ ज्ञान क्या है? यथार्थ ज्ञान उस सत्ता का ज्ञान है, जिसमें देश, काल और व्यक्ति में परिवर्तन से भी उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। इस जगत में सभी कुछ सकारण है, अर्थात कार्य, कारण का परिणाम होता है और कारण का परिणाम कार्य होता है। यह इसी तरह चलता रहा है। एक स्तर पर कार्य दूसरे स्तर पर कारण बन
जाता है। जहां कार्य-कारण तत्त्व काम करता है, वहां अपूर्णता रहती है। इस ज्ञान से अथवा इस ज्ञान के आने वाले स्रोतों पर कोई अहंकार नहीं कर सकता। वेद में कहा गया है- मैं कहता हूं कि मैं नहीं जानता हूं और न यह कहता हूं कि मैं जानता हूं, क्योंकि वह परमसत्ता सिर्फ उसी के द्वारा जानी जाती है, जो जानता है कि परमात्मा जानने और नहीं जानने के परे है। परमसत्ता देश, काल और व्यक्ति के परे है। जिस आध्यात्मिक-मानसिक ज्ञान का अंतिम बिन्दु आध्यात्मिक ज्ञान हो, वही एकमात्र ज्ञान है।