26 Apr 2024, 02:22:36 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

आशंका और प्रश्नों में अश्रद्धा है ही नहीं। आशंका और प्रश्न श्रद्धा की तलाश हैं। बुद्धि बाधा नहीं बनती। बुद्धि तुम्हारा साथ दे रही है। बुद्धि कहती है- जल्दी श्रद्धा मत कर लेना, नहीं तो कच्ची होगी। बुद्धि कहती है- पहले ठीक से जांच-परख तो कर लो। तुम मिट्टी का घड़ा खरीदने बाजार जाते हो- चंद पैसों का घड़ा- तो सब तरफ से ठोक-पीट कर लेते हो या नहीं! तुम यह तो नहीं कहते कि यह बुद्धि जो कह रही है, जरा घड़े को ठोक-पीट
लो, यह दुश्मन है घड़े की। नहीं, घड़े की दुश्मन नहीं है। यह कह रही है, जब घड़ा लेने ही निकले हो तो घड़ा जैसा घड़ा लेना। पानी भर सको, ऐसा घड़ा लेना। श्रद्धा करने निकले हो तो ऐसी श्रद्धा लेना कि परमात्मा को भर सको। ऐसा टूटा-फूटा घड़ा मत ले आना। कच्चा घड़ा मत ले आना कि पहली बरसात हो और घड़ा बह जाए। पानी आए और रुके न। छिद्र वाला घड़ा मत ले लेना। वे तुम्हारे सारे प्रश्न घड़े को ठोकने-पीटने के हैं। बुद्धि के दुश्मन मत बन जाओ। ऐसा मत सोच लो कि बुद्धि अनिवार्य रूप से श्रद्धा के विरोध में है। नहीं, जरा भी नहीं। सिर्फ बुद्धिमान ही श्रद्धालु हो सकता है। बुद्धिहीन श्रद्धालु नहीं होता, सिर्फ विश्वासी होता है। विश्वास और श्रद्धा में बड़ा भेद है। विश्वास तो इस बात का संकेत है कि इस आदमी में सोच-विचार की क्षमता नहीं है। विश्वास तो अज्ञान का प्रतीक है। जो मिला, सो मान लिया। जिसने जो कह दिया, सो मान लिया। न मानने के लिए, प्रश्न उठाने के लिए तो थोड़ी बुद्धि चाहिए, प्रखर बुद्धि चाहिए। बुद्धि सिर्फ तुमसे यह कह रही है- उठाओ प्रश्न, जिज्ञासाएं खड़ी करो। जब सारे प्रश्नों के उत्तर आ जाएं, और सारी शंकाएं-कुशंकाएं गिर जाएं, तब जो श्रद्धा का आविर्भाव होगा, वही सच है।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »