नए साल के समय बहुत से लोगों को अचानक यह अहसास होता है, अरे! एक साल और बीत गया! समय धारा के इस बहाव के प्रति हम कुछ क्षणों के लिए आश्चर्य करते हैं और उसके बाद फिर से व्यस्त हो जाते हैं। अजीब बात यह है कि यह लगभग हर साल होता है। यदि हम आश्चर्य के इन क्षणों में गहराई से जाएं तो हमें यह बोध होगा कि हमारे अंदर एक ऐसा पहलू है, जो समय की इन सभी घटनाओं का साक्षी है। हमारे अंदर यह साक्षी अपरिवर्तनीय है और उसी संदर्भ से हम समय के साथ आने वाले बदलाव का अवलोकन कर पाते हैं।
जीवन में बीती सभी घटनाएं आज एक सपना बन गई हैं। ज्ञान यानी जीवन की इस सपना रूपी प्रकृति के बारे में सजग होना, जो अब भी बीतता जा रहा है। इस ज्ञान द्वारा अंदर से बहुत शक्ति मिलती है और घटनाओं एवं परिस्थितियों से आप विचलित नहीं होते। साथ ही, घटनाओं का जीवन में एक अपना स्थान है। हमें उनसे सीख लेकर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। जो भी चुनौतियां हों, हमें एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए प्रयासरत रहने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है, जब हम अपने भीतर आत्मस्थित होकर तटस्थ रहें। आप ही के अंदर एक अभिनेता भी है और एक दर्शक भी। जितना तुम अपने अंदर जाते हो, उतना ही तुम्हारा साक्षीस्वरूप पहलू बढ़ता है और तुम घटनाओं से अछूते रहते हो। हमारे अस्तित्व के ये दो बिल्कुल विपरीत पहलू ध्यान द्वारा पोषित होते हैं। जब तुम आत्मा के समीप आते हो तो तुम्हारे द्वारा किए गए कर्म दुनिया में अधिक प्रभावशाली बन जाते हैं और दुनिया में किए गए सही कर्म आत्मा के समीप जाने के लिए सहायक होते हैं।