25 Apr 2024, 05:36:12 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मनन का अर्थ है सोचना, विचारना, चिंतन करना। मन को एक दिशा में ले जाने के लिए जो विचार किया जाता है, उसे मनन कहते हैं। श्रवण अर्थात सद्ग्रंथों के अध्ययन, सुनने व साधुओं की सत्संगति से सत्य-असत्य, नित्य-अनित्य का विवेक उत्पन्न होता है। अर्थात, सत्य-असत्य, आत्मा-अनात्मा का विश्लेषण करने की विचार शक्ति को विवेक कहते हैं और इस प्रकार किए जाने वाले विश्लेषण को मनन कहते हैं। गुरु द्वारा अथवा स्वयं ईश्वर की कथाओं को सुनने व बारंबार मनन करने से एकमात्र परम सत्य, नित्य ईश्वर के चरणों में प्रेम उत्पन्न होता है और समस्त विनाशशील, अनित्य एवं सांसारिक वस्तुओं से आसक्ति हट जाती है।
 

 

साथ ही यह भी समझ आने लगता है कि जैसे रस्सी भ्रम के कारण सर्प की तरह अनुभव होती है, वैसे ही ईश्वर की माया के कारण अनेक प्रकार से प्रतीत हो रहा है, वास्तव में जीवात्मा- परमात्मा आदि सब कुछ एक ही हैं। इस प्रकार इस तत्व को समझ लेना ही विवेक है। इस विवेक द्वारा जब सत्य-असत्य का पृथक्करण हो जाता है, तब असत्य से आसक्ति हट जाती है। साथ ही लोक-परलोक के समस्त पदार्थों और कर्मों में मन नहीं लगता, इसे ही वैराग्य कहते हैं। इस प्रकार मनन अर्थात चिंतन करते रहने से विवेक-वैराग्य उत्पन्न होता है, जिससे साधक/शिष्य का मन निर्मल हो जाता है। उसमें क्षमा, सरलता, पवित्रता, प्रिय-अप्रिय में समता आदि गुणों का आविर्भाव होने लगता है। साथ ही मन, शरीर और इंद्रियां विषयों से हट जाते हैं और गंगातट, तीर्थस्थान, गिरि-गुहा, वन आदि एकांत देश ही प्रिय लगता है।

 

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