25 Apr 2024, 09:59:18 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

मानव जीवन का मकसद वेद शास्त्र के मुताबिक परमानंद की प्राप्ति है। यह परमानंद कहां मिलता है, क्या इसका कोई पता-ठिकाना है, यदि है तो बताओ, मैं भी वहां जाना और पाना चाहता हूं। एक नास्तिक व्यक्ति ने एक योगी से सवाल किया। योगी ने पूछा, तुम कभी अपने आप से बातें करते हो? नास्तिक ने कहा, अपने आप से क्या बात करना! यह तो पागलों के लक्षण हैं। मैं कोई पागल तो हूं नहीं। जवाब सुन कर योगी ने बहुत सहज भाव से कहा, प्यारे फिर तो संभव नहीं है परमानंद को हासिल करना। उसके लिए तो पागल ही होना पड़ता है। क्या तुम ऐसा कर सकोगे?
 
 
योगी का यह सवाल नास्तिक के लिए उलझन में डालने वाला था। वह सोचने लगा, यह भला कैसे संभव है। अपने आप से क्या बात की जा सकती है? उसके अंदर एक स्फुरण हुआ और चिल्ला कर बोला, योगी, मैं अब पागल हो जाऊंगा। आज से आप को मेरी यही दशा देखने को मिलेगी। एक वर्ष बाद नास्तिक फिर उसी जगह आया और योगी से बोला, अब मैं नास्तिक नहीं हूं, क्योंकि मैं अपने आप से बातें कर लेता हूं। मैं जानने लगा हूं कि इस धराधाम पर क्यों और किस लिए आया हूं। मैं यह भी समझने लगा हूं कि इसके अलावा कोई दिव्यता का रास्ता नहीं है।
 
 
हमारे अंदर आमतौर पर हमेशा अंर्तबोध होता रहता है, लेकिन हमारी उस तरफ न तो कोई रुचि होती है और न हम उसे महत्व ही देते हैं। इसलिए हम अंतर्मन में होने वाली तमाम हलचलों को न तो समझ पाते हैं और न इसका महत्व ही समझते हैं। परिणामस्वरूप हम उस परमानंद का अहसास ही नहीं कर पाते, जो हमारी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद होता है।
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