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वैराग्य का मतलब बुराइयों से अप्रभावित रहना

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 7 2015 3:12AM | Updated Date: Apr 7 2015 3:12AM
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भगवान जब इस संसार में आते हैं, तब दुनिया के मनुष्यों में एक ध्रुवीकरण हो जाता है। कुछ एकदम उनके आदेश के अनुसार हर काम करने को तैयार हो जाते हैं और कुछ एकदम उनके खिलाफ हो जाते हैं। जो उनके आदेश के अनुसार काम करते हैं, वे धार्मिक हैं और जो उनके विपरीत करते हैं, वे अधार्मिक हैं। कृष्ण के समय में सुदामा जैसे भक्त भी आते हैं और कंस जैसे आदमी भी अर्थात ध्रुवीकरण हो जाता है। कोई उनकी निंदा किए बिना पानी नहीं पीते तो कोई गुणगान किए बिना पानी नहीं पीते, किन्तु धर्माचरण के लिए वैराग्य एक अति आवश्यक अंग है। वैराग्य का अर्थ सब कुछ छोड़ कर हिमालय की गुफा में भाग जाना नहीं है।
 
 
अगर सब लोग घर-द्वार छोड़ कर हिमालय की गुफा में चले गए तो हिमालय की गुफाओं में सब लोगों के लिए स्थान होगा क्या? क्या इतनी गुफाएं हैं? अगर सभी वहां चले गए तो वहीं नगर नहीं बस जाएगा? फिर सेवा तो साधना का एक अंग है। सब अगर गुफा में चले गए तो सेवा किसकी करोगे? सेवा करने के लिए तो नर रूपी नारायण मिलेंगे नहीं। तो वैराग्य का अर्थ क्या है? दुनिया में सब कुछ ही विषय है।
 
 
 
विषय छोड़ कर जाओगे कहां? अगर जंगल में चले गए तो वहां भी तुम्हारी देह है, वह भी तो विषय है। उसको भी छोड़ना होगा। मन भी तो एक विषय है। यह सब छोड़ देना तो मर जाना है। दुनिया में आए हो काम करने के लिए, जीने की साधना करने के लिए, मरने की साधना करने के लिए नहीं। वैराग्य माने हर चीज के बीच में रहो, किन्तु उस वस्तु के रंग से अपने मन को मत रंगो, उससे प्रभावित मत हो।
 
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