मनुष्य जब क्षुद्र बुद्धि भावना से प्रेरित होकर कोई काम करता है तो वह क्षुद्र बन जाता है और दु:ख पाता है। वही जब कोई ब्रह्म भावना लेकर काम करता है, तब उसको आनंद मिलता है। शांति मिलती है। जो क्षुद्र भावना लेकर काम करते हैं उनका क्या होता है? उनका पथ क्या है? विश्लेषण का पथ है। एक को टुकड़ों में बांटते हैं और जो ब्रह्म भावना से प्रेरित होकर चलते हैं, वे क्या करते हैं? अनेक को एक करते हैं। उनका रास्ता क्या है? संश्लेषण का। तो संश्लेषण ही जीवन है। संश्लेषण ही शांति है और विश्लेषण मृत्यु है।
मनुष्य जब अपने को छोटा बनाता है, छोटा बनाते-बनाते अंतत: वह देखता है कि जो है वह भी अपना नहीं है। उसके बाद शरीर और प्राण भी बाद में लड़ाई करेंगे। वे भी एक नहीं। वे दो भी अलग-अलग हैं। तो कोई अपना नहीं। जब मनुष्य देखेंगे कि दुनिया में कोई अपना नहीं है तब भीतर हाहाकार शुरू हो जायेगा। शांति नहीं रहेगी। मरने के पहले ही वह मर जाएगा। तो जितना दु:ख है, उसके पीछे कारण क्या है? विश्लेषण और जितना सुख है उसके पीछे कारण क्या है?
संश्लेषण। यह जो संश्लेषणात्मक गति, अनेक को एक बनाने का प्रयास है, यही है साधना। साधना 'मैंपन' को छोटा बनाने के लिए नहीं है, 'मैंपन' को बढ़ाते-बढ़ाते अनंत बना देता है। उससे होगा क्या? जिधर देखोगे उधर ही 'मैं'। सब में समदृष्टि, सब में आत्मदर्शन और छोटा बनाने से क्या होगा? जिधर देखोगे सब कोई 'पर' अपना कोई नहीं। कर्म अगर करना है तो केवल पुण्यकर्म ही करो और पुण्यकर्म क्या है? पुण्यकर्म है संश्लेषण।