वैराग्य का अर्थ क्या है? दुनिया में सभी कुछ विषय है। विषय छोड़ कर जाओगे कहां? अगर जंगल में चले गए तो वहां भी तुम्हारी ‘देह’ है, वह भी तो विषय है। उसको भी छोड़ना होगा। ‘मन’ भी तो एक विषय है। यह सब छोड़ देना तो मर जाना है। दुनिया में आए हो काम करने के लिए, जीने की साधना करने के लिए, मरने की साधना करने के लिए नहीं। वैराग्य माने हर चीज के बीच में रहो, किंतु उस वस्तु के रंग से अपने मन को मत रंगो, उससे प्रभावित मत हो। दुनिया की हर वस्तु तुम्हारे वश में हो, तुम वस्तु के वश में नहीं जाओ। यह हुआ वैराग्य। धर्म क्या है?
‘ध्रियते धर्म: स एव परमप्रभु:’ अर्थात जो तुम्हें धारण कर रहा है, जो तुम्हारे जीवन का आधार है। तुम्हारी जो विशेषता है, वही तुम्हारा धर्म है। जो तुम्हारा आधार है, वही तुम्हारा धर्म है। इसलिए धर्म का जो निर्देश है, वह मानना ही पड़ेगा। धर्म के अनुसार तुमको चलना ही है। जैसे, तुम्हारा मन चाहा कि सिर नीचे और पैर ऊपर करके चलना है। यह मनुष्य के लिए स्वाभाविक नहीं, ऐसा करने से तुम्हारी मौत हो जाएगी। वह धर्म नहीं है। वहां तुम अपनी तर्क बुद्धि लगाओ कि ऐसा करने से हम स्वस्थ रहेंगे क्या? तुम स्वस्थ नहीं रह सकते। धर्म का निर्देश क्या है?
धर्म का निर्देश है कि तुम्हें साधु होना चाहिए। साधु कौन है? जो व्यक्ति मन में सोचते हैं कि मेरे लिए मेरा प्राण जितना प्यारा है, दूसरे लोगों के लिए भी उनके प्राण उतने ही प्यारे हैं। ऐसा समझकर जो दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, वही हैं साधु। साधुता के विरुद्ध तुम्हें नहीं जाना। जहां धर्म का निर्देश है, वहां दूसरी बात नहीं चलेगी।