19 Apr 2024, 07:17:58 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

जीव तथा भगवान की स्वाभाविक स्थिति के विषय में अनेक दार्शनिक ऊहापोह में रहते हैं। जो भगवान कृष्ण को परम पुरुष के रूप में जानता है, वह सारी वस्तुओं का ज्ञाता है। अपूर्ण ज्ञाता परम सत्य के विषय में केवल चिंतन करता जाता है, जबकि पूर्ण ज्ञाता समय का अपव्यय किए बिना सीधे कृष्णभावनामृत में लग  जाता है, अर्थात भगवान की भक्ति करने लगता है। सम्पूर्ण भगवद्गीता में पग-पग पर इस तथ्य पर बल दिया गया है। भगवद्गीता के भाष्यकार परमेश्वर तथा जीव को एक ही मानते हैं। वैदिक ज्ञान श्रुति कहलाता है, जिसका अर्थ है श्रवण करके सीखना।

वास्तव में वैदिक सूचना कृष्ण तथा उनके प्रतिनिधियों जैसे अधिकारियों से ग्रहण करनी चाहिए। यहां कृष्ण ने हर वस्तु का अंतर सुंदर ढंग से बताया है, अतएव इसी स्रोत से सुनना चाहिए, लेकिन केवल सुनना पर्याप्त नहीं है। मनुष्य को चाहिए कि अधिकारियों से समझे। ऐसा नहीं कि केवल शुष्क चिंतन ही करता रहे। मनुष्य को विनीत भाव से भगवद्गीता से सुनना चाहिए कि सारे जीव सदैव भगवान के अधीन हैं। जो भी इसे समझ लेता है, वही श्रीकृष्ण के कथनानुसार वेदों के प्रयोजन को समझता है, अन्य कोई नहीं समझता।

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