तंत्र के पास पाप की धारणा नहीं, कोई अपराध-भाव नहीं। मात्र सचेत बने रहो। जो घट रहा है, उसके प्रति जागरूक बने रहो। सचेत, जो हो रहा है उसके प्रति सावधान। प्रवाह को चले आने दो। स्त्री में गति करो और स्त्री को गति करने दो तुम्हारे भीतर उन्हें एक वर्तुल बनने दो। और तुम साक्षी बने रहो। इसी देखने और होने देने द्वारा, तंत्र रूपांतरण को प्राप्त कर लेता है। तंत्र कहता है, कामना का उपयोग सीढ़ी की भांति करो। उसके साथ संघर्ष मत करो। उसका उपयोग करो और उससे बाहर हो जाओ। उसमें से आगे बढ़ो, उसमें से गुजरो, और अनुभव द्वारा रूपांतरण को उपलब्ध हो जाओ। ध्यानपूर्ण अनुभव रूपांतरण बन जाता है। योग कहता है ऊर्जा व्यर्थ मत गंवाना।
काम से पूर्णतया दूर हट कर बाहर निकल जाना। इसमें जाने की कोई जरूरत नहीं। तुम इससे एकदम कतरा कर निकल सकते हो। ऊर्जा को सुरक्षित रखो और प्रकृति के धोखे में मत आओ। प्रकृति के साथ संघर्ष करो। संकल्पशक्ति ही बन आओ। नियंत्रित जीव हो जाओ, जो कहीं नहीं बह रहा। योग की सारी विधियां इसलिए हैं कि तुम्हें ऐसा बनाया जाए, जिससे प्रकृति में बहने की जरूरत न हो। योग कहता है प्रकृति को अपने रास्ते जाने देने की कोई जरूरत नहीं। तुम इसके मालिक हो जाओ और तुम अपने से चलो- प्रकृति के विरुद्ध। यह योद्धा का मार्ग है- 'निर्दोष योद्धा', जो लगातार लड़ता है और लड़ने द्वारा रूपांतरित होता है।