वैराग्य की स्थिति वह है कि आपके पास कुछ है अथवा नहीं, इसका आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यहां तक कि यदि आपके पास कुछ है तो भी आप तैयार रहते हैं कि एक न एक दिन इसे छूटना ही है अर्थात आप इस अस्थायी संसार के स्थायित्व को समझते हैं। जब आपको कुछ अधिक बेहतर स्तर का मिल जाए तो कुछ छोड़ना सरल हो जाता है। आप समझते हैं कि आप उस निम्न भोग से ऊपर उठ गए हैं, परंतु आप यह भूल जाते हैं कि यह वास्तव में कुछ अधिक व बेहतर प्राप्त कर लेने का संतोष है।
संतोष की स्थिति सदैव होनी चाहिए, चाहे आपको कुछ प्राप्त हो या न हो, क्योंकि यही आपको योग की ओर ले जाएगी। संभवत: आप अपनी शक्ति व क्षमता से भू-लोक पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन इस प्रकार से आप त्रिदेव को नहीं जीत सकते, क्योंकि वे वैराग्य का प्रतीक हैं। उनके पास अपने लिए कुछ नहीं है और न ही वे अपने लिए कुछ करते हैं। वे सृष्टि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उन तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग वैराग्य है। याद रहे कि देवलोक तक पहुंचने के बाद पुन: अवतरण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, क्योंकि जो ऊपर जाता है, उसे नीचे तो आना ही होता है। भोग के प्रति यही वैराग्य कष्ट के प्रभाव को मिटा देता है और वैराग्य की यही स्थिति त्रिदेव में विलीन कर सकती है। वैसे अब वेदों के ज्ञान का अनुसरण नहीं किया जा रहा और एक नए युग की शुरुआत के लिए यह सृष्टि वास्तव में अपने अंत की ओर बढ़ रही है, यह चिंतनीय है।