शिव ने कहा है- मुझसे ही सब कुछ सृजित हुआ है। आप लोगों ने देखा है कि चना-मूंग को जल में भिगो कर रख देने पर अंकुर निकल आता है। तो ठीक उसी प्रकार अभी हमारे इस विश्व-ब्रह्मांड में जो कुछ घट रहा है, उसे तो परमपुरुष मन ही मन ही सोच रहे हैं। किसी को बाघ बनाया है, किसी को राक्षस बनाया है, किसी को विद्वान तो किसी को मूर्ख। कोई ठग रहा है तो कोई ठगा जा रहा है।
मन ही मन वे आकाश, अंतरिक्ष, पर्वत, समुद्र सभी का चिंतन करते जा रहे हैं। तब ये सभी क्या अंकुर हैं? हां, अंकुर हैं। सब उनके हृदय से निकला, जिसे अंकुर कहते हैं। अब पृथ्वी पर ऐसी कोई वस्तु है क्या, जो उनके हृदय से निकला अंकुर न हो? हो ही नहीं सकता। तुम विद्वान हो, तुम बड़ी ज्ञान की बातें करते हो। ये ज्ञान की बातें क्या हैं? उनके मन का अंकुर है। ऐसा कुछ है, जो उनके बाहर है? ना, नहीं है।
तो कहा जाता है कि सभी कुछ जो अंकुरित होता है, जो सृष्ट होता है, वह परमशिव अंकुरित है। परमपुरुष चिंतन कर रहे हैं, इसीलिए मानव अस्तित्व है। इस मन की कल्पना से उन्होंने जिन्हें बनाया है, वे सभी उनके मन के भीतर ही हैं। मन के बाहर जाने का कोई उपाय नहीं है। जितना भी हाथ-पैर क्यों न पीटें और कहें- हे परमपुरुष! मैं तुम्हें नहीं मानता, मैं तुम्हें मान नहीं रहा। यह भी वह कहेगा इस मन के भीतर से। हाथ-पैर पटकेगा परमपुरुष के मन के भीतर से ही।