कृष्णपाल सिंह/ आलोक शर्मा उज्जैन। अंतिम शाही स्नान को लेकर पुलिस द्वारा की गई बेरिकेडिंग से जनता गली-कूचों व चौराहो पर कैद होकर रह गई। हालत यह थी कि मुख्य सड़क से लेकर गलियो में जिसे जहां जगह मिली उसने अखाड़ों के स्नान तक का समय वहां ही गुजारा। श्रद्धालुओं की फजीहत देखकर क्षेत्र के लोगों ने सोने व खाने-पीने की व्यवस्थाएं की। रामघाट पर संतों के साथ स्नान करने पहुंचे भक्तों को धक्कामुक्की का शिकार होना पड़ा।
सदी के दूसरे कुंभ पर्व के अंतिम शाही स्नान में पुण्यलाभ कमाने आई जनता के लिए न तो गलियों में कोई जगह थी और न ही चौराहों पर कोई ठिकाना। हालत यह रही कि बड़े बुजुर्गों व बच्चों को साथ लेकर आए लोगों को रात गुजारने के लिए जहां जगह मिली वो वही सो गया।
दरअसल, लोगों को उम्मीद थी कि पिछली बार की तरह ही वे रात 12 बजे बाद घाटों पर पहुंचकर स्नान कर लेंगे। लेकिन प्रशासन द्वारा स्नान के समय में किए गए फेरबदल की वजह से लोगों को घाटों तक जाने की जगह ही नहीं मिली। हर गली, हर मोहल्ले में भारी भीड़ जमा थी लेकिन उन गलियों के चौराहों पर खुलने वाले मुंह बेरिकेडस की वजह से बंद कर दिए गए व वहां पुलिस बल तैनात होने के कारण लोग अपने परिवार के साथ गलियों में बने ओटलों पर ही रात गुजारने से नहीं चुके। हालत यह थी कि लोगों की इस भीषण गर्मी में जान निकल रही थी और गलियों में तो क्या चौराहों पर बनी प्याऊ में भी पानी नहीं था। मेला क्षेत्र की तमाम प्याऊ इसी तरह सूखी पड़ी थी। बाद में स्थानीय लोगों ने अपने-अपने घरों से पानी की टंकियां लगाकर पीने के पानी की व्यवस्था की। ओटलों पर सोए लोगों के लिए पंखे लगवाए गए। वहीं उन्हें बिछाने के लिए जाजम डाली गई।
आखिरी स्नान था इसलिए सब्र तो टूटना ही था...
पुलिस ने सभी जगह नाकाबंदी कर दी और लोग खुली जेल की तरह अंदर ही बंद होकर रह गए। ऐसे में जो लोग बाहर निकल गए उन्हें बेइज्जत होना पड़ा वो अलग था। पिछले दोनों शाही स्नान की तुलना से कहीं ज्यादा लोग देवमेले में शामिल होने के लिए शहर पहुंचे थे। उन्हें करीब 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पैदल ही पार करना पड़ी। आगर नाके के समीप वाहन रोक दिये गए जबकि शहर में जाने देने में उन्हें कोई परेशानी नहीं थी। लिहाजा लोग मासूम छोटे बच्चों व बुजुर्गों को पैदल लेकर ही स्नान के लिए पहुंचे।
पुलिस ने की अभद्रता
शाही स्नान से पहले शुक्रवार रात पुलिस और आम श्रद्धालुओं के बीच जमकर विवाद हुआ। श्रद्धालुओं को ‘खिलौना’ बनाया जा रहा था और एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकाया जा रहा था, ताकि समय काटा जाए और उन्हें परेशान किया जाए। भीड़ बढ़ती देख पुलिस की जहां मर्जी हुई वहां श्रद्धालुओं को रोक दिया गया। स्थिति यह थी कि वाहनों के साथ पैदल श्रद्धालुओं को भी पुलिस ने घाटों की ओर जाने नहीं दिया। इसके बाद पुलिस और आम श्रद्धालुओं में विवाद हुआ। पुलिस ने इस दौरान आम श्रद्धालुओं के साथ न सिर्फ दुर्व्यवहार किया, बल्कि सख्ती दिखाते हुए उन्हें खदेड़ना शुरू कर दिया, जिससे स्थिति गड़बड़ा गई।
रामघाट और दत्त घाट पर की बेरिकेडिंग
रामघाट और दत्त घाट की ओर जाने वाले मार्ग पर पुलिस और श्रद्धालुओं के बीच पूरी रात विवाद होता रहा। यहां कई स्थानों पर बेरिकेड्स लगा दिए गए और हर मार्ग से श्रद्धालुओं को जाने से रोक दिया। इसके चलते पैदल जा रहे श्रद्धालुओं को काफी लंबा घुमाया गया, ताकि वो परेशान होकर बगैर शाही स्नान में शामिल हुए रवाना हो जाए। कुल मिलाकर भीड़ के कारण पुलिस व्यवस्था बनाने में नाकाम हो रही थी और उसका खमियाजा श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ रहा था। खास बात यह थी कि एक ओर जहां भक्ति में डुबे भक्त स्नान के लिए परेशान हो रहे थे, वहीं पुलिस के एक बड़े अधिकारी अपनी साथी दो पुलिसकर्मियों को वीआईपी ट्रीटमेंट का जलवा दिख रहे थे। इन अधिकारी से जैसे ही बात की तो चुप-चाप भाग निकले।
खाए पुलिस के डंडे
नानाखेड़ा की ओर से आने वाले कई श्रद्धालुओं को रात के समय पुलिस की सख्ती का शिकार होना पड़ा। रात करीब एक बजे पुलिस ने हरिफाटक ब्रिज से घाट की ओर जाने वाले मार्ग को भी बंद कर दिया था। श्रद्धालुओं ने कारण पूछा तो कहा कि घाट पर भीड़ है और वरिष्ठ अधिकारियों ने भीड़ रोकने के लिए कहा है, जबकि वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया था। इसी फर्जी आदेश का फायदा उठाकर पुलिस की दिनभर अराजकता दिखाई दी गई और श्रद्धालुओं को भीषण गर्मी में रोक दिया गया। इस कारण आम श्रद्धालुओं ने विरोध जताया तो पुलिस ने पहले तो अपशब्दों का प्रयोग किया और जब बस नहीं चला तो कई श्रद्धालुओं को डंडे भी खाने पड़े। उधर, आगर रोड से नई सड़क की ओर जाने वाले सभी मार्गों को पुलिस ने बेरिकेड्स लगाकर बंद कर दिया था। इस दौरान न तो वाहन प्रवेश कर पा रहे थे और न ही पैदल श्रद्धालु घाट की ओर जा रहे थे।