19 Apr 2024, 23:25:09 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

 कालसर्प दोष एक ऐसा योग है, जो व्यक्ति को तरह-तरह का दु:ख, आर्थिक कष्ट, परिवार के कलह, दुर्घटना, बीमारी, पति-पत्नी में अनबन, झगड़ा, तलाक और अपमान देता है। कालसर्प योग कई प्रकार के होते हैं। यह योग जिस भाव में बनता है उस भाव को पूरी तरह खराब कर देता है। साथ ही कुण्डली के अन्य भावों को भी अपने कुप्रभाव में लेकर विभिन्न परेशानियों खड़ी कर देता है।

 
लग्न, पांचवें, नौवें, तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में यदि राहु कन्या लग्न में होकर कालसर्प योग बनाता है तो व्यक्ति को सुख सुविधा प्रदान करता है।
 
यहां हम कालसर्प योग के दुष्प्रभाव से राहत पाने के उपाय और पूजा पाठ के बारे में बता रहे हैं। इस योग से पीडि़त व्यक्ति जीवनभर विभिन्न कष्टों को उठाता है। जब राहु या केतु की कोई भी दशा या गोचर प्रभाव में रहता है तो व्यक्ति की बाधाएं और परेशानियां बढ़ जाती हैं।
 
तंत्रोक्त सात्विक पूजा से इस योग के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। 'महानिर्वाण तंत्र' में भगवान शंकर ने मां पार्वती से कहा है कि अगमोक्त विधि विधान(तंत्र) द्वारा ही दु:ख कष्ट से राहत और वांछित फल की प्राप्ति संभव और सरल है, श्रुति स्मृति इत्यादि से वांछित फल की प्राप्ति कठिन है। यहां हम आपको कालसर्प योग के कष्ट से निवारण और लाभ के लिए कुछ उपाय बता रहे हैं जिनके करने से किसी तरह का कोई नुकसान नहीं है और थोड़े समय में ही कुछ अनुकूलता प्रभाव दिखने लगते हैं। 
 
 
उपाय
1 - कालसर्प दोष से निवारण की प्रार्थना करते हुए मां दुर्गा की मूर्ति के सामने 108 लाल गुडहल के फूल एक-एक करके अर्पित करें। हर बार 'ऊं ऐं ह्री क्लीं चामुण्डाये विच्चे 'बोलें। अंत में दुर्गा सप्तशती में वर्णित 'तंत्रोक्त देवी सूक्तम' का पाठ करें। इसके बाद गुलाब जामुन या चना और हलुवा का भोग लगाकर एक लाल चुनरी अर्पित करें। इसके बाद घी के दीपक और कपूर से मां की आरती करें।
 
 2 - यदि संभव हो तो 108 बहुत छोटे-छोटे चांदी के सर्प या फिर जितना सामर्थ्य हो उतने सर्प मंदिर में शिवलिंग पर चढाएं। उसके बाद दूध, शहद, भांग चढ़ाकर 108 बार 'ऊं नम: शिवाय' का जप करें। फिर पंचामृत अर्पित करके आरती करें।
 
 3 - बटुक भैरव मंदिर में जाकर चमेली का तेल सिन्दूर, चांदी का तबक भैरव जी को अर्पित करें। इमरती का भोग लगाएं और थोड़ी सी मदिरा भगवान बटुक भैरव को अर्पित करें। इसके बाद निम्न मंत्र को बोलकर ध्यान करें :-
 
ऊं कर कलित कपाल: कुण्डली दण्डपाणि
स्तुत तिमिर नीलो व्याल यज्ञोपवीती
क्रतु समय सपर्या विघ्नविच्छेद हेतु
र्जयति बटुकनाथ सिद्धि: साधकानाम।
 
इसके बाद 108 बार 'ऊं बम बटुकाय नम:' का जाप करें, अन्त में आरती करें।
 
ध्यान रखें
हर महीने में एक बार यह करना है और पहली बार जब उपरोक्त पूजा करें तो उपाय नं.1 किसी दुर्गाष्टमी या सर्वार्थ सिद्धि योग वाले दिन दूसरे उपाय एवं तीसरा उपाय महीने के किसी शिवरात्रि या भैरवाष्टमी के दिन करें। उपरोक्त उपायों में से कोई एक अपने सामर्थ्य  एवं सुविधानुसार कर सकते हैं।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »