उपदेश और संकेत दे कर दूसरों को सुधार सकें या नहीं सुधार सकें, लेकिन अपने आपको जरूर बनाया जा सकता है। इस प्रक्रिया से, जिसे स्वसंकेत या आटो सजेशन कहते हैं, अवचेतन में गहराई में प्रवेश कर, व्यक्ति में अभीष्ट सुधार-परिवर्तन किया जा सकता है। सजेशन अर्थात् संकेत क्या है?
उत्कृष्ट, पुष्ट एवं दृढ़ विचार, स्पर्श, ध्वनि, शब्द, दृष्टि, विभिन्न आसनों, क्रियाओं के जरिए अपने या दूसरों के मन पर प्रभाव डालने और अपनी इच्छा द्वारा कार्य करने का नाम संकेत है। संकेत ऐसे वाक्यों से किया जाता है, जिनमें अपूर्व दृढ़ता, गहन श्रद्धा, शक्ति भरी रहती है। साधक कुछ शब्दों, वाक्यों सूत्रों को लेता है, मंत्रजप की तरह बार-बार उन्हें मन में उठाता है और उन पर अपनी विचार-क्रिया दृढ़ करता है।
इस प्रक्रिया से कुछ समय बाद विचार स्थायी स्वभाव में बदल जाते हैं। मन को जिस प्रकार का प्रबोध बार-बार दिया जाता है, कालांतर में वही उसकी स्थायी संपत्ति हो जाती है। मन ही हमारे संपूर्ण शारीरिक एवं मानसिक क्रिया-कलापों का संचालक है। विचारों को उत्पन्न, परिवर्तन करने का कार्य भी इसी संचालक यंत्र के जरिए होता है। अत: स्व-संकेत का सीधा प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है।
जब मन इन संकेतों से अपना पूर्ण तादात्म्य स्थापित कर लेता है, उन्हें स्वीकार कर लेता है, तब वह अपने क्रिया-व्यापार, व्यवसाय उनके अनुसार करने लगता है। सफलता व सिद्धि तब दूर नहीं रह जाती। मनुष्य का चेतनक्षेत्र समुद्र की तरह गहरा और विशाल है। ऊपरी सतह से नीचे उतरने पर पाई जाने वाली अलग अलग परतों को अचेतन, अवचेतन, सुपरचेतन की परतें कहते हैं। सक्रिय मस्तिष्क को निद्रित कर देना और अचेतन को क्रियाशील बना देना सम्मोहन एवं स्व-संकेत द्वारा संभव है।
इस प्रकार की स्व-संकेत या स्व-संवेदन प्रक्रिया को आटोजेनिक ट्रेनिंग नाम दिया गया है। सम्मोहन में प्राय: सम्मोहित व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है और उसके निदेर्शों एवं संकेतों के आधार पर चलना पड़ता है। इससे उसके व्यक्तित्व पर बुरा असर पड़ सकता है। यह कमी ऑटोसजेशन या ओटोजेनिक ट्रेनिंग से दूर हो जाती है। यह एक प्रकार की साइकोथैरेपी है, जो स्वयं के जरिए स्वयं के लिए की जा सकती है।
प्रणव पांड्या