दुनिया में बढ़ रहे आतंकवाद को लेकर अब जरूरी हो गया है कि इनके समूल विनाश के लिए भगवान राम जैसी सांगठनिक शक्ति और दृढ़ता दिखाई जाए। आतंकवादियों की मंशा दहशत के जरिए दुनिया को इस्लाम धर्म के बहाने एक रूप में ढालने की है। जाहिर है, इससे निपटने के लिए दुनिया के आतंक से पीड़ित देशों में परस्पर समन्वय और आतंकवादियों से संघर्ष के लिए भगवान राम जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। दुनिया के शासकों अथवा महानायकों में भगवान राम ही एक ऐसे अकेले योद्धा हैं, जिन्होंने आतंकवाद के समूल विनाश के लिए एक ओर जहां आतंक से पीड़ित मानवता को संगठित किया, वहीं आतंकी स्त्री हो अथवा पुरुष किसी के भी प्रति उदारता नहीं बरती।
अपनी इसी रणनीति और दृढ़ता के चलते ही राम त्रेतायुग में भारत को राक्षसी या आतंकी शक्तियों से मुक्ति दिलाने में सफल हो पाए। उनकी आतंकवाद पर विजय ही इस बात की पर्याय रही कि सामूहिक जातीय चेतना से प्रकट राष्ट्रीय भावना ने इस महापुरुष का दैवीय मूल्यांकन किया और भगवान विष्णु के अवतार का अंश मान लिया, क्योंकि अवतारवाद जनता-जर्नादन को निर्भय रहने का विश्वास, सुखी व संपन्न रहने के अवसर और दुष्ट लोगों से सुरक्षित रहने का भरोसा दिलाता है। अवतारवाद के मूल में यही मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति काम करती है, लेकिन राम वाल्मीकि के रहे हों, चाहे गोस्वामी तुलसीदास के अलौकिक शक्तियों से संपन्न होते हुए भी वे मनुष्य हैं और उनमें मानवोचित गुण व दोष हैं।
राम के पिता अयोध्या नरेश भले ही त्रेतायुग में आर्यावर्त के चक्रवर्ती सम्राट थे, किंतु उनके कार्यकाल में कुछ न कुछ ऐसी कमियां जरूर थीं कि रावण की लंका से थोपे गए आतंकवाद ने भारत में मजबूती से पैर जमा लिए थे। जैसे कि हम वर्तमान में पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद से परेशान हैं। इस आतंक को भारत में फैलाने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर में बाकायदा आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाए जा रहे हैं। यहां से निर्यात हो रहे आतंकवाद की व्यापकता भारत में खतरनाक ढंग से पैर पसार रही है। कमोबेश यही स्थिति राम-युग में थी। तुलसीदास ने इस सर्वव्यापी आतंकवाद का उल्लेख कुछ इस तरह से किया है- निसिचर एक सिंधु महुं रहई। करि माया नभु के खग गहई। गहई छांह सक सो न उड़ाई। एहि विधि सदा गगनचर खाई। यानी ये आतंकी अनेक मायावी व डरावने रूप रखकर नगरों तथा ग्रामों को आग के हवाले कर देते थे।
ये उपद्रवी ऋषि- मुनियों और आम लोगों को दहशत में डालने की दृष्टि से पृथ्वी के अलावा आकाश एवं सागर में भी आतंकी घटनाओं को अंजाम देने से नहीं चूकते थे। इनके लिए एक संप्रभु राष्ट्र की सीमा, उसके कानून और अनुशासन के कोई अर्थ नहीं रह गए थे। इनके विध्वंस में ही इनकी खुशी छिपी थी। ऐसे विकट संक्रमण काल में महर्षि विश्वामित्र ने आतंकवाद से कठोरता से निपटने के रास्ते खोजे और राम से छात्र जीवन में ही राक्षसी ताड़का का वध कराया। उस समय लंकाधीश रावण अपने साम्राज्य विस्तार में लगा था। रावण ने अपने कार्यकाल में उसी तरह से आतंकवाद को ताकत दी, जिस तरह से वर्तमान महाशक्तियों रूस और अमेरिका ने अफगानिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दिया था। यही काम अमेरिका ने पाकिस्तान में किया। अमेरिका में आतंकी हमलों के बाद उसने पाकिस्तान पर कुछ प्रतिबंध लगाए तो चीन, पाकिस्तान को संरक्षण देने लग गया।
चीन वर्तमान में अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को आगे बढ़ा रहा है। इसी नजरिए से वह भारत के सीमांत देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में भारत के खिलाफ माहौल बनाने का काम कर रहा है। ताड़का कोई मामूली स्त्री नहीं थी। वह रावण के पूर्वी सैनिक अड्डे की मुख्य सेना नायिका थी। राम का पहला आतंक विरोधी संघर्ष इसी महिला से हुआ था। जब राम ने ताड़का पर स्त्री होने के नाते, उस पर हमला करने में संकोच किया, तब विश्वामित्र ने कहा आततायी स्त्री हो या पुरुष वह आततायी होता है, उस पर दया धर्म - विरुद्ध है। राम ने ऋषि की आज्ञा मिलते ही महिला आतंकी ताड़का को सीधे युद्ध में मार गिराया। वर्तमान में महिला आतंकियों के खतरे बढ़ रहे हैं। हाल ही में पाकिस्तान से खबर आई है कि पीओके में महिलाओं को जिहादी बनाया जा रहा है। आईएस आईएस, बोकोहरम और अलकायदा में भी महिला आतंकियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
राम-रावण युद्ध भगवान राम ने श्रीलंका को आर्यावर्त के अधीन करने की दृष्टि से नहीं लड़ा था, यदि उनकी ऐसी इच्छा होती तो वे रावण के अंत के बाद विभीषण को लंका का अधिपति बनाने की बजाय, लक्ष्मण को बनाते या फिर हनुमान, सुग्रीव या अंगद में से किसी एक को बनाते। उनका लक्ष्य तो केवल अपनी मातृभूमि से जहां आतंकवाद खत्म करना था, वहीं उस देश को भी सबक सिखाना था, जो आतंक का निर्यात करके दुनिया के दूसरे देशों की शांति भंग करके, साम्राज्यवादी विस्तार की आकांक्षा पाले हुए था। ऐसे में भारत के लिए राम की प्रासंगिकता वर्तमान आतंकी परिस्थितियों में और बढ़ गई है। इससे देश के शासकों को अभिप्रेरित होने की जरूरत है।