एक कथा के अनुसार पुराने समय में अनलासुर नाम का एक असुर था। जिसकी वजह से स्वर्ग और धरती पर सभी त्रस्त थे। अनलासुर ऋषि-मुनियों और आम लोगों को जिंदा निगल जाता था। असुर से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे। सभी ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे अनलासुर का नाश करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल गणेश ही कर सकते हैं। जब गणेश ने अनलासुर को निगला तो उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के उपाय किए गए, लेकिन गणेशजी के पेट की जलन शांत नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
किसी भी शुभकार्य को करने से पहले लोग अक्सर पूजा पाठ करते हैं। घर से बाहर जाना हो, नए घर में शिफ्ट होना हो या फिर कोई त्योहार ही क्यों न हो, ज्यादातर लोग भगवान की पूजा करते ही हैं। इसी तरह किसी भी शुभकाम करने से पहले जिन भगवान की पूजा सबसे पहले की जाती है, वे गणेश जी ही हैं। किसी भी काम का शुभारंभ करने से पहले लोग सबसे पहले श्रीगणेशाय नम: लिखते हैं। दरअसल, इसके पीछे मान्यता है कि गणेश जी की पूजा करने से किसी भी शुभ कार्य में कोई विघ्न, बाधा नहीं आती है। जो कार्य आप कर रहे हैं, वह सकुशल संपन्न होता है। एक बार सभी देवताओं में इस बात को लेकर विवाद हो गया कि आखिर किन भगवान की पूजा सबसे पहले की जाए। इसको लेकर विवाद काफी आगे बढ़ता चला गया। सभी देवता खुद को सर्वेश्रेष्ठ बता रहे थे। इसी दौरान नारद जी वहां पहुंचे और पूरी स्थिति समझी। नारद जी ने सभी देवताओं से कहा कि यदि इस मामले को सुलझाना है तो उन्हें शिव भगवान की शरण में जाना चाहिए। शिवजी के पास आने के बाद शिवजी ने कहा कि वे जल्द ही इस पूरे मामले को एक प्रतियोगिता के जरिए से सुलझाएंगे। भगवान शिव ने एक प्रतियोगिता आयोजित की। इसमें सभी देवताओं को आदेश दिया गया कि वे सभी अपने वाहन में सवार हो जाएं। आदेश मानने के बाद उन्हें ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर आने को कहा गया। शिवजी ने कहा, 'जो देवता ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के बाद सबसे पहले यहां पहुंचेगा, उसी की इस प्रतियोगिता में जीत होगी। वह देवता ही आगे सबसे पहले पूजा जाएगा। भी देवता इस प्रतियोगिता को जीतने के इरादे से अपने वाहन में सवार हुए और ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। इसी दौरान गणेश जी अपने वाहन में नहीं सवार हुए। वे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के बजाए अपने माता-पिता यानि की भगवान शिवजी और माता पार्वती के चक्कर लगाने लगे। उन्होंने सात बार परिक्रमा की और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। जब सभी देवता ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाकर वापस आए तो उन्होंने गणेशजी को वहीं खड़ा हुआ पाया। इसके बाद बारी आई प्रतियोगिता का रिजल्ट जारी करने की। भगवान शिवजी ने फौरन गणेश जी को विजयी घोषित कर दिया। इसपर सभी ने वजह पूछी। भगवान शिवजी ने कहा, ब्रह्माण्ड में माता पिता को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। माता पिता की पूजा करना ही सबकुछ है। इसके बाद से ही गणेशजी की पूजा सबसे पहले होने लगी।