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Astrology

हरतालिका तीज पर महिलाएं ऐसे करें पूजा, पाएं विशेष आशीर्वाद

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 21 2017 10:26AM | Updated Date: Aug 21 2017 10:26AM
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हरतालिका तीज इस साल 24 अगस्त को मनाई जाएगी। हरितालिका दो शब्दों से बना है, हरित और तालिका। हरित का अर्थ है हरण करना और तालिका अर्थात सखी। यह पर्व भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, इस कारण इसे तीज कहते हैं। इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है, क्योंकि पार्वती की सखी (मित्र) उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी।
 
पूजन के लिए सामग्री
गीली मिट्टी या बालू रेत, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल, अकांव का फूल, मंजरी, जनैव, वस्त्र व सभी प्रकार के फल एंव फूल पत्ते आदि। पार्वती मां के लिए सुहाग सामग्री मेंहदी, चूड़ी, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग आदि। श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, दीपक, दही, चीनी, दूध, शहद व गंगाजल पंचामृत के लिए।
 
महिलाएं रखती हैं निर्जला व्रत 
हरितालिका तीज के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन शंकर-पार्वती की बालू या मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है। घर को स्वच्छ कर तोरण-मंडप आदि सजाया जाता है। एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती व उनकी सखी की आकृति बनाई जाती हैं। इसके बाद देवताओं का आह्वान कर षोडशेपचार पूजन किया जाता है। इस व्रत का पूजन पूरी रात्रि चलता है। प्रत्येक पहर में भगवान शंकर का पूजन व आरती होती है।
 
पूजन की विधि 
सर्वप्रथम ‘उमामहेश्वरायसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मन्त्र का संकल्प करके भवन को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्रित करें। हरितालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता है। प्रदोष काल अर्थात दिन-रात्रि मिलने का समय। संध्या के समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वला वस्त्र धारण करें। फिर पार्वती व शिव की मिट्टी से प्रतिमा बनाकर विधिवत पूजन करें। इसके बाद सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा कर रखें, फिर इन सभी वस्तुओं को पार्वती जी को अर्पित करें। 
 
शिव जी को धोती तथा अंगोछा अर्पित करें फिर सुहाग सामग्री किसी ब्राहम्णी को व धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दान करें। इस प्रकार पार्वती व शिव का पूजन कर हरितालिका व्रत कथा सुनें। भगवान शिव की परिक्रमा करें फिर गणेश जी की आरती करें, फिर शिव जी और पार्वती जी की आरती करें। इसके बाद भगवान शिव की परिक्रमा करें। रात्रि जागरण करके सुबह पूजा के बाद माता पार्वती को सिन्दूर चढ़ाएं। ककड़ी-हलवे का भोग लगाएं और फिर उपवास तोड़ें। अन्त में सारी सामग्री को एकत्रित करके एक गड्ढा खोदकर मिट्टी में दबा दें।
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