24 Apr 2024, 23:51:04 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

 किसी भी प्रकार की पूजा, यज्ञ-हवन, पंचोपचार-षोडशोपचार पूजा आदि के बाद आरती अंत में की जाती है। साधारणतः पांच बत्तियों से आरती की जाती है, इसे ‘पंचप्रदीप’ भी कहते हैं। एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती की जाती है। प्रदोष व्रत से जुडे तथ्यों के बारे में जानें कुंकुम, अगर, कपूर, चंदन, रूई और घी, धूप की एक पांच या सात बत्तियां बनाकर शंख, घंटा आदि बाजे बजाते हुए भगवान की आरती करनी चाहिए। आरती रोजाना प्रातः काल तथा सायंकाल पूरे परिवार के साथ करनी चाहिए। आरती से घर व आस-पास का वातावरण भी शुद्ध होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त होती है। आइये जाने कुछ और आरती करने के वैज्ञानिक कारण।

 


आरती का महत्‍व
आध्यात्मिक-वैज्ञानिक महत्व हमें आरती करने का सही तरीका तो पता है, लेकिन क्या हम उसके अन्य तथ्यों को जानते हैं। जैसे भगवान की आरती करते वक़्त हम आरती दक्षिणावर्त की तरह से शुरू करते हैं, यानी अनहंत चक्र से ( हृदय की तरफ से ) अध्न्या चक्र ( मध्य-भौंह तक ) तक, इसकी चक्र को पूरा करते हुए आरती की जाती है।

 


आरती का सही तरीका
सही तरीका आरती की थाली चांदी, पीतल या तांबे की होनी चाहिए, फिर उसमें आटें या किसी धातु से बना दीपक रखा जाता है। उसमें घी या तेल डाल कर रूई की बत्ती बना कर रखी जाती है। रूई की बत्ती ना हो तो कपूर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। अब थाली में थोड़े से फूल, अक्षत और मिठाई रखी जाती है। कई मंदिरों में पुजारी सिर्फ घी का दीपक जाल के आरती करते हैं। आरती करते वक़्त सारे भक्त आरती की रौशनी में लीन होके भगवान के भजन गाते हैं। यह आरती हमारे ब्रम्हांड के पांच तत्वों आकाश, पवन, अग्नि, जल, और पृथ्वी को दिखता है।

 


वैज्ञानिक महत्व
5 बत्तियों वाले दीप से आरती की जाती है जिसे ‘पंचप्रदीप' कहा जाता है। यह पांचों तत्व यानी आकाश, पवन, अग्नि, जल, और पृथ्वी को दर्शाता है, जो हमारे अंदर मौजूद है। ईश्वर की आरती करने से लौ द्वारा उत्सर्जित सत्व आवृत्तियं उत्पन होती हैं, जो धीरे-धीरे राजस आवृत्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं। यह आवृत्तियं आरती करने वाले की आत्मा के चारों ओर  सुरक्षात्मक कवच बना देती है, जिससे तरंगकवच कहते हैं। आरती करने वाला जितनी श्रद्धा से आरती करेगा यह कवच उतना ही मजबूत होगा

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