नई दिल्ली। पूरे भारत में नागपंचमी मनाई जा रही है। नाग पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है और हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन नागों की पूजा की जाती है और उन्हें दूध पिलाया जाता है।
इस दिन अष्टनागों की पूजा की जाती है और इस मंत्र का जाप किया जाता है।
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः.
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनञ्जयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥
(अर्थ: वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनञ्जय - ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं)
ये है पूजा का समय
नागपंचमी की पूजा सुबह सात बजकर एक मिनट से लेकर 28 जुलाई को सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक की जा सकती है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक अगर किसी जातक की कुंडली में कालसर्प दोष हो तो उसे नागपंचमी के दिन भगवान शिव और नागदेवता की पूजा करनी चाहिए। इस पर्व पर प्रमुख नाग मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजा करते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता।
ये है पूजा की विधि
नागपंचमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर साधक पूजन स्थान को पवित्र कर कुशा का आसन स्थापित करें. सबसे पहले हाथ में पानी लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें। इसके बाद संकल्प लें कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा-पाठ कर रहा/रही हूं। इसलिए मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष से मुक्त करें. यह कहकर एक कलश स्थापित करके पूजा आरंभ करें। नागपंचमी के दिन दही, दूध, कुशा, गंध, पंचामृत, पुष्प, घी, फल, खीर के द्वारा नागों की पूजा की जाती है। इस दिन ब्राह्मण को भोजन करवायें और स्वंय भी यही भोजन करें।
नागपंचमी को लेकर यूं तो कई कहानियां प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कहानी जो इस दिन पर कही और सुनाई जाती है वो इस तरह है :
प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।
एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया (खर और मूज की बनी छोटी आकार की टोकरी) और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरापराध है।'
यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।
उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले. वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।