धार्मिक सौहार्द की बात करें और बरेली के बमनपुर की रामलीला की बात न आए ऐसा नहीं हो सकता। होली पर होने वाली अपने आप में यह अनोखी रामलीला हिन्दू-मुस्लिम एकता और भाईचारे की गवाह रही है। कभी इस रामलीला के बंद होने की स्थिति आ गई थी तो धर्मगुरु आला हजरत मुफ्ती ए आजम ए हिन्द ने अदालत में पैरवी करके इसे दोबारा शुरू कराया था। रामलीला के अलग-अलग प्रसंगों का मंचन अलग-अलग मोहल्लों में होता है जिसमें आज भी हिन्दू-मुस्लिम साथ मिलकर मंचन कराते हैं।
होली से एक दिन पहले निकलने वाली राम बारात में हुरियारों की टोली का मुस्लिम समाज जोरदार स्वागत करता है। पंडित राधेश्याम इस रामलीला में तुलसी रामायण के साथ-साथ अपनी शैली में कथावाचन किया करते थे तो लोग उन्हें सुनने दूर-दूर से आते थे। उनके बाद पंडित रघुवर दयाल, पंडित रज्जन गुरु ने लीला में चार चांद लगाए हैं। रामलीला का वैसे तो 1861 से इतिहास मिलता है मगर बुजुर्गों की माने तो यह लीला इससे भी कहीं अधिक पुरानी है। फिलहाल यह लीला अपना 157वां वार्षिकोत्सव मनाने जा रही है।
यूनेस्को ने घोषित किया विश्व धरोहर
यूनेस्को ने 2016 में इस रामलीला को विश्व धरोहर घोषित किया। अध्यक्ष ने बताया कि उत्तर प्रदेश के संस्कृति विभाग ने तब से लीला के संरक्षण के लिए कमेटी को एक लाख रुपए की आर्थिक सहायता देनी शुरू कर दी। लीला में अलग-अलग प्रसंगों का मंचन अलग-अलग स्थानों पर होता है। वैसे तो रामलीला मंचन दीवाली के समय होता है मगर रामायण और पुराणों में रावण वध की तिथि चैत्रकृष्ण एकादशी दर्शाई गई है इसीलिए यह लीला होली पर होती है।