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Astrology

सूर्योपासना का महापर्व नहीं दूजा जैसी छठ पूजा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 5 2016 12:37AM | Updated Date: Nov 5 2016 12:37AM
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मुंबई। मायानगरी मुंबई में धीरे-धीरे छठ पर्व का स्वरूप बदल रहा है। यहां छठ पर्व का शुभारंभ तो कई वर्षों पूर्व हुआ था, लेकिन उस समय लोगों की छठ मैया के प्रति भक्ति अपार देखने को मिलती थी, लोग हंसी, खुशी, हर्षोल्लास, प्रेम-व्यवहार, भाईचारे के साथ छठ पूजा करते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला गया वैसे ही छठ पूजा का स्वरूप बदलता गया है और छठ पर्व को खासकर मुंबई में लोग राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने लगे। राजनीतिक पार्टियां छठ पूजा के माध्यम से अपना वोट बैंक साधने लगी हैं। मुंबई में हर त्योहार मनाने का अपना एक अलग अंदाज होता है, लेकिन छठ पूजा पर मुंबईकर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं, आज भी बिहार में छठ पर्व की जो लोकप्रियता है वो कहीं और नहीं देखने को मिलती है।

छह नवंबर को छठ

छठ पर्व छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने पर्व है। सूर्योपासना का यह लोक पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत में मनाया जाता है, लेकिन वर्तमान में जहां भी बिहारी बंधु हैं, वहां यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जानकारों के मुताबिक मुंबई में जब छठ पूजा की प्रियता मोहन मिश्र (छठ उत्सव महासंघ के अध्यक्ष) नेबढ़ाई। लेकिन खासकर मुंबई में छठ पूजा को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है। 
 
छठ पूजन
छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन होता है. प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल चतु र्थी नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। नहाए-खाए के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है। पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन करते हैं।
 
व्रत का फल
36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं व्रत समाप्त होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं। खरना पूजन से ही घर में देवी ष्ठी का आगमन हो जाता है। षष्ठी पर घर के समीप किसी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर सूर्यास्त और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य मर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है।
 
ऐसे हुई पुजा कीशुरुआत
इस यज्ञ के बाद राजा प्रियवंद की पत्नी  पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन वह पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर
श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुर्इं। उन्होंने प्रियंवद से कहा कि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वह षष्ठी कहलाती हैं। उन्होंने प्रियंवद से उनकी पूजा करने के लिए दूसरों  प्रेरित करने को कहा। जिसके बाद राजा प्रियंवद को पुत्र रत्न प्राप्ति हुई। 
 
छठ पर्व का महत्व
देश के अलावा विदेश में रहने वाले भारतीय लोग भी इस पर्व को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। एक मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है। भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है। इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है। छठ के दौरान लोग सूर्यदेव की पूजा करते हैं, इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं।
 
पुत्र की दीर्घ आयु के लिए छठ
महाराज मुकेश झा बताते हैं कि छठ पूजा उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय पर्व है। चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को महापर्व भी कहा जाता है। इस पर्व में भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ्य देने का नियम है। इस बार छठ पूजा चार नंवबर से शुरू होकर सात नवंबर तक है। छठ पूजा अपने कुल, वंश की रक्षा करने के लिए रखा जाता है।
 
लोगों को समाज से जोड़ती है छठ पूजा
छठ पूजा के मौके पर मुंबई के कुछ लोगों से बात की गई। उन्होंने बताया कि छठ पूजा जरिए बिहारी समाज के लोग एक मंच पर आते हैं। खासकर मुंबई में छठ के जरिए एक-दूसरे से मिलते हैं। साथ ही, नई पीढ़ी के लोगों को अपनी संस्कृति और सभ्यता से वाकिफ होते हैं।
 
अंचरा से अंगना बहारब
इतना ही नहीं, घाट तक अर्घ्य के लिए ले जाए जाने वाले टोकरे-बहंगी की लचक में भी लोक संस्कृति ने अपने सुर-लय ढूंढ़ लिए हैं-कांचे ही बांस
के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए। पूरे इलाके में जिन घरों में छठ पूजा होनी होती है, वहां अहले सुबह से ही छठ के गीत गूंजने लगते हैं, गांवों की महिलाएं गीत गाती पहुंचती हैं और वहां मंदिर की सफाई करती हैं।
 
छठ पर्व पर सजीं दुकानें
लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के अवसर पर मुंबई के बाजारों की रौनक बढ़ गई है। इन दुकानों पर रंग बिरंगे, कपड़े बिक रहे हैं। वहीं दूसरी
ओर पूजन-सामग्रियों के अलावा सूप, डलिया, नारियल, फल, गुड़, मिट्टी के बर्तन आदि की दुकानें जगह-जगह सज चुकी हैं। बता दें कि इन दिनों कुछ स्थानों पर छठ महापर्व को लेकर अस्थाई दुकानें भी खुल गई हैं।
 
महंगाई ने कमर तोड़ी
छठ व्रतियों और उनके परिजनों द्वारा छठ पूजा में उपयोग होने वाले सूप-डलिया के अलावा मिट्टी के बर्तन तथा पूजन-सामग्रियों की जमकर खरीदारी की जा रही है। इस वर्ष सभी सामाग्रियों के दामों में बढ़ोतरी हुई है। बता दें कि अभी हाल ही में दिवाली त्योहार खत्म हुआ है। जिसके छह दिन बाद छठ पर्व है और महंगाई डायन कमर तोड़ रही है, जिस पर छठ महापर्व की आस्था भारी पड़ रही है। लोग अपनी क्षमता के अनुसार सारी तैयारियां करने में दिन-रात जुटे हुए हैं।
 
छठ पर्व की कथा
बाणगंगा मंदिर के मुख्य पुजारी मुकेश झा महाराज बताते हैं कि छठ पर्व की शुरुआत कहां से हुई, कब हुई, कैसे हुई, क्यों हुई जैसे सवालों के जवाब में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। भगवान राम और लंका विजय से जुड़ी कहानी, महाभारत की द्रोपदी ने इस दिन व्रत रखा, राजा प्रियंवद की कहानी आदि है। लेकिन इनमें से राजा प्रियंवद की कहानी अधिक प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी, उन्हें महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराने का सुझाव दिया और प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी।
 
सभी समान रूप से रखते हैं व्रत
छठ का त्यौहार सूर्योपासना का पर्व होता है। छठ का त्योहार सूर्य की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायं काल में सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्योहार सभी समान रूप से मनाते हैं। प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है। छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है। किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा होती है।
 
छठ पूजा तिथि
छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है। इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस लंबे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करता। बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। छठ त्यौहार के समय बाजारों में जमकर खरीदारी होती है, लोग इसके लिए खासकर फल, गन्ना, डाली और सूप आदि जमकर खरीदते हैं।

भोजपुरी गीतों की धूम
छठ पर्व पर भोजपुरी गीतों की धूम रहती है। भोजपुरी में छठ मइया की भक्ति-आराधना के लिए बेशुमार गीत रचे गए हैं। इन गीतों के माध्यम से छठ मइया के प्रति समर्पण व्यक्त किया जाता है। भक्ति से सराबोर इन गीतों में मां छठ से खुशहाल जीवन की कामना की जाती है। छठ पूजा के दौरान बजते ये गीत पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं।
 
छठ पूजा पर सियासत
मुंबई में भी छठ का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। छठ पूजा में जुटने वाली भारी भीड़ पर राजनीतिक पार्टियों और नेताओं की नजरें लगी रहती हैं। अब यहां छठ पूजा में भी सियासत की जाने लगी है। छठ पूजा के दौरान सियासी घमासान देखते ही बनती है। यह सियासी घमासान शुरू भी हो चुका है।
 
छठ पूजा पर बेस्ट की अतिरिक्त बसें
मुंबई शहर और उपनगर में बेस्ट उपक्रम ने छठ पूजा के मद्देनजर रखते हुए अतिरिक्त बसें चलाई हैं। अतिरिक्त बसें रविवार 6 नवंबर और सोमवार 7 नंवबर को चलाई जाएंगी। सोमवार को बस क्रमांक 203, 231, 253, 256, 339 सहित कुल 22 अतिरिक्त बसें चलाई जाएंगी। ये बसें जुहू बीच, गणेश घाट, पवई, गोराई खाड़ी आदि स्थानों के लिए चलाई गई हैं। इन बस स्टॉपों पर यातायात अधिकारी, टिकट निरीक्षक को विशेष रूप से तैनात किया गया है। अगर इस दौरान यात्रियों को कोई भी समस्याएं होती है तो बस स्टॉप पर उपस्थित अधिकारियों से जानकरी प्राप्त करें। बेस्ट उपक्रम के जनसंपर्क अधिकारी हनुमंत गोफने ने बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो और अतिरिक्त बसें चलाई जाएंगी।

 

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