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Astrology

जानिए वास्तु देव पूजन का क्या है महत्व

By Dabangdunia News Service | Publish Date: May 31 2016 10:44AM | Updated Date: May 31 2016 10:44AM
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वास्तु प्राप्ति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापन व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव पूजा का विधान है। घर के किसी भी भाग को तोड़ कर दोबारा बनाने से वास्तु भंग दोष लग जाता है। इसकी शांति के लिए वास्तु देव पूजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी यदि आपको लगता है कि किसी वास्तु दोष के कारण आपके घर में कलह, धन हानि व रोग आदि हो रहे हैं तो आपको नवग्रह शांति व वास्तु देव पूजन करवा लेना चाहिए।
 
किसी शुभ दिन या रवि पुण्य योग को वास्तु पूजन कराना चाहिए। रोली, मोली, पान के पत्ते, लौंग, इलायची, साबुत सुपारी, जौ, कपूर, चावल, आटा, काले तिल, पीली सरसों, धूप, हवन सामग्री, पंचमेवा, शुद्ध धी, तांबे का लोटा, नारियल, सफेद वस्त्र, लाल वस्त्र-2, पटरे लकड़ी के, फूल, फूलमाला, रूई, दीपक, आम के पत्ते, आम की लकड़ी, पंचामृत (गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) स्वर्ण शलाखा, माचिस, नींव स्थापन के लिए अतिरिक्त सामग्री, तांबे का लोटा, चावल, हल्दी, सरसों, चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा, अष्टधातु कश्यप, (5) कौड़ियां, (5) सुपारी, सिंदूर, नारियल, लाल वस्त्र घास, रेजगारी, बताशे, पंचरत्न, पांच नई ईंटे।
 
पूजन वाले दिन प्रात:काल उठकर घर की सफाई करके शुद्ध कर लेना चाहिए। जपूजा के लिए किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण की सहायता लेनी चाहिए। ब्राह्मण को उत्तर मुखी होकर बैठना चाहिए।  मंत्रोच्चारण द्वारा शरीर शुद्धि, स्थान शुद्धि व आसन शुद्धि की जाती है। सर्वप्रथम गणेश जी का आराधना करनी चाहिए। तत्पश्चात नवग्रह पूजा करना चाहिए। वास्तु पूजन के लिए गृह वास्तु में (81) पव के वास्तु चक्र का निर्माण किया जाता है। 81 पदों में (45) देवताओं का निवास होता है। 
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