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Astrology

एकादशी को चावल से परहेज

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 29 2016 11:07AM | Updated Date: Feb 29 2016 11:07AM
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एकादशी की विशिष्टता बताते हुए शास्त्रों में कहा गया है- 

न विवेकसमो बन्धुनैर्कादश्या: परं व्रतं 

अर्थात - विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है। पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध लेता वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। एकादशी विष्णु से उत्पन्न होने के कारण विष्णुस्वरुपा है। जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है।

पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इंद्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार मन और श्वेत रंग का स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी (बगैर जल पिए) करने का सुझाव दिया था। 

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