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Astrology

सूर्य का नियमित ध्यान आपके लिए कितना फायदेमंद

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 9 2016 10:42AM | Updated Date: Feb 9 2016 10:42AM
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रूसी वैज्ञानिक ब्लादिमीर देस्यातोय का कहना है कि पृथ्वी पर समय-समय पर आने वाले चुंबकीय प्रभाव से मनुष्य की मस्तिष्कीय तरंगों में परिवर्तन होता है। आधुनिक मस्तिष्क विज्ञानी भी मानने लगे हैं कि मस्तिष्कीय क्रिया क्षमता का मूलभूत स्रोत अल्फा तरंगें धरती के चुंबकीय क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं और भू-चुम्बकत्व का सीधा संबंध आकाशीय पिण्डों से है। मानव जीवन और उसकी रहन-सहन अंतरिक्षीय घटनाक्रमों एवं शक्तियों से संबंधित है। अतएव अंतरिक्ष में उत्पन्न होने वाली हर हलचल धरती और धरतीवासियों के मन, बुद्धि और चेतना को प्रभावित करती है। 
 
यही वजह है कि अनेक शास्त्र अपने-अपने ढंग से सूर्य से मानवीय सूत्र-संबंधों की व्याख्या-विवेचना करते हैं। सूर्य केवल मन को ही नहीं, शरीर को भी प्रभावित करता है। शरीर में जितनी धातुएं, रासायनिक तत्त्व आदि हैं, वह सब सूर्य में भी विद्यमान हैं। मानव देह सूर्य और पृथ्वी तत्त्वों के उचित सम्मिश्रण से बना हुआ है।
 
इसलिए पंच भौतिक शरीर पृथ्वी से ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि उस पर सूर्य का भी बड़ा प्रभाव होता है। शरीर की क्रियाओं का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि अन्न, जल आदि पृथ्वी का रस सेवन करने से हमारे शरीर में आक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, आयरन, गंधक, सोडियम, कैल्शियम आदि विभिन्न तत्त्व उत्पन्न होते हैं। ये सभी तत्त्व सूर्य में सूक्ष्म प्राण शक्तियों के रूप में क्रियाशील होते हैं। 
प्राण के माध्यम से ही ये हमारे शरीर में स्पंदित होते हैं।
 
इस प्रकार प्राण, पंचभौतिक प्रकृति और मनोमय कोश तीनों ही अंग सूर्य देव में विद्यमान हैं। सूर्य भगवान का दृश्य और अदृश्य क्रिया क्षेत्र मानव शरीर और पृथ्वी ही नहीं, अनेक ग्रह-नक्षत्रों तक व्याप्त है। जो दिखाई देता है वह न्यून एवं अल्प है, अविज्ञात और रहस्य इससे अनंत गुना अधिक है।
 
परंतु जब वह अपना संबंध सूर्य देव के साथ जोड़ लेता है, तो वह भी उसी तरह विस्तृत एवं विराट् बन जाता है और वह उसी तरह न केवल पृथ्वी की हलचलों और परिवर्तनों का जानकार हो जाता है, वरन् उसे ब्रह्माण्डों के भी रहस्य ज्ञात होने लगता है। वह अपने अन्तर्निहित प्राणशक्ति का अभिवर्द्धन करने योग्य हो जाता है।
 
प्राण विद्या के आचार्यों के अनुसार सूर्यदेव की भर्ग शक्ति मनुष्य के अंत:करण में प्रवेश करती है, तो अंदर के कुसंस्कार जलने-गलने लगते हैं और सत्संस्कारों का विकास होता है। ब्रह्ममुहूर्त में सूर्यदेव का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र का जप करने पर शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
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