-शैलेंद्र जोशी
इंदौर। शंकराचार्य मठ के प्रभारी गिरीशानंद महाराज ने बताया वास्तव में ग्रहों की चाल के कारण मकर संक्रांति पर्व की तारीख हर सौ-पचास साल में बढ़ती जा रही है। इसी के चलते अब से करीब 600 साल बाद मकर संक्रांति 23 जनवरी को आया करेगी। इस तरह पिछले 400 और अगले 600 साल मिलाकर हजार साल में मकर संक्रांति जनवरी की 9 तारीख से बढ़ती हुई 23 तारीख तक पहुंच जाएगी। इस तरह करीब हजार साल में मकर संक्रांति का पर्व करीब 14 दिन आगे बढ़ जाएगा, जबकि 400 साल में छह दिन आगे बढ़ गया है।
सूर्य मकर राशि में
ज्योतिषाचार्य पं. चंद्रभूषण व्यास ने बताया ज्योतिषीय नजरिए से सूर्य सालभर में 12 राशियों में भ्रमण करता है। इसी दौरान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं। उत्तर दिशा में देवताओं का वास होता है, इसलिए इससे सकारात्मकता आती है। इसी तरह दक्षिण में दैत्यों का वास माना गया है।
जब सूर्य झुक जाता है उत्तर की तरफ
ज्योतिषाचार्य पं. व्यास बताते हैं कि संक्रांति की तारीख खगोल विज्ञान का सबसे प्रामाणिक उदाहरण है। पृथ्वी की तयशुदा घूमने की गति के बीच सूर्य के उत्तरायण होने का वक्त ही मकर संक्रांति होती है। मकर संक्रांति ग्रहों की स्थिति पर आधारित है। सूर्य के उत्तरायण होने का सरल शब्दों में यह अर्थ भी है कि सूर्य उत्तर दिशा की ओर झुका हुआ उदित होता है। इस मामले में ज्योतिष ग्रंथ सूर्य सिद्धांत और खगोल विज्ञान के मतों में समानता है।
वार भी बढ़ते क्रम में
गणेशाचार्य पं. कैलाश नागर बताते हैं मकर संक्रांति की तारीख तो खास होती ही है, वार का क्रम भी कम रोचक नहीं है। जैसे 2015 में यह गुरुवार को आई थी। इस बार यानी 2016 में शुक्रवार, 2017 में शनिवार और 2018 में रविवार को मकर संक्रांति आएगी।
दो साल 14 जनवरी को, दो साल 15 को
पंचांगविद् पं. मनोज व्यास बताते हैं करीब साठ सालों के पंचांगों का अध्ययन करने से पता चलता है कि अधिकांश यह पर्व लगातार दो साल 14 जनवरी को तो दो साल 15 जनवरी को पड़ता है।
परंपरा के अनुसार मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इसी के साथ तिल स्नान भी किया जाता है। गिरीशानंद महाराज ने मकर संक्रांति को सेहत का पर्व करार देकर इसके वैज्ञानिक कारण बताए-
दो ऋतुओं का संधिकाल होता है यह...
सुधरता है पाचन-तंत्र : मकर संक्रांति पर दो ऋतुओं शिशिर और बसंत ऋतु का संधिकाल होता है। इसके कारण शरीर का तापमान भी बदलने लगता है और इसका दुष्प्रभाव पाचन तंत्र पर पड़ता है, जिसे सुधारना जरूरी है।
हिमोग्लोबिन बढ़ता है : इस दौरान गुड़-तिल बांटा जाता है, क्योंकि इनके खाने से शरीर का तापमान नियंत्रित हो जाता है और खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ने से सेहत ठीक रहती है।
तट पर अनुकूल किरणें : इस दिन नदी की कल-कल ध्वनि ब्रह्मांड के समतुल्य हो जाती है।
इसके साथ ही नौ ग्रहों की किरणें नदी के तटवर्ती क्षेत्र में पड़ती हैं, जिससे वहां मौजूद रहने और स्नान करने से इंद्रियां केंद्रित हो जाती हैं। ऐसे में हम जो भी इच्छा व्यक्त करते हैं, वह फलीभूत होने लगती है। यहां तक कि अनिष्टकारक ग्रह भी अनुकूल हो जाते हैं।
त्वचा रोग से बचाव : शीत के कारण वातावरण में खुस्की होती है। इससे चर्मरोग की आशंका रहती है। ऐसे में तिल के उबटन से स्नान करने से त्वचा में कांति आती है और रोग दूर हो जाते हैं।
विकारों का नाश : दान-पुण्य से त्याग की भावना जगती है और विषयों और विकारों का नाश हो जाता है। इससे व्यक्ति सांसारिकता से अध्यात्म की ओर जाता है और उसके लिए मुक्ति का मार्ग खुल जाता है।
लगातार बदलाव
सन् 1600 9 जनवरी
सन् 1616 9 जनवरी
सन् 1714 10 जनवरी
सन् 1716 11 जनवरी
सन् 1814 12 जनवरी
सन् 1816 13 जनवरी
सन् 1916 14 जनवरी
सन् 2016 15 जनवरी
सन् 2116 16 जनवरी
सन् 2152 17 जनवरी
सन् 2216 18 जनवरी
सन् 2314 19 जनवरी
सन् 2316 20 जनवरी
सन् 2416 20 जनवरी
सन् 2452 21 जनवरी
सन् 2516 22 जनवरी
सन् 2600 23 जनवरी