वास्तुशास्त्र में भवन के उत्तर में अधिक खुला स्थान छोड़ना उत्तर की ओर खिड़की, दरवाजे एवं झरोखों का अधिक होना, उत्तर में जमीन का ढलना होना, उत्तर में भवन की ऊंचाई का कम होना तथा उत्तर में ऊंचे पेड़ या किसी अन्य भवन का न होना आदि नियम आवासीय भवन में चुम्बकीय बल के उपयोग के लिए बनाए गए हैं।
पृथ्वी को मिलने वाली ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है। सौर मण्डल में यह ऊर्जा का केन्द्र है। यह अपनी विकिरणों के माध्यम से धरती पर ऊर्जा, ऊष्मा (ताप) एवं प्रकाश देकर हमारे जीवन को गतिशील बनाता है। उहाहरणार्थ यदि प्रात:काल सूर्य की किरणें हमारे घर और आंगन में प्रसारित हों, तो पराबैंगनी किरणों के प्रभाववश घर और घर में रहने वाले लोगों को इसका पर्याप्त लाभ होगा। इसके लिए घर की पूर्व दिशा में खुला भाग छोड़ना, घर के पूर्व में द्वार, खिड़की एवं झरोखे बनाना और घर के पूर्व भाग में वृक्षों को न लगाना आदि नियम बताये गए हैं।
अपरान्ह एवं सायंकाल सूर्य की रक्ताभ किरणों की गर्मी और उससे होने वाली हानि से बचने के लिये ही घर के पश्चिम भाग में वृक्षारोपण का विधान है। वस्तुत: हमारे ऋषियों एवं मनीषी-आचार्यों ने प्रकृति एवं सृष्टि के रहस्योंका साक्षात्कार कर हमारे जीवन में प्रकृति की शक्तियों का उपयोग करने के लिए वास्तुशास्त्र के अनेक नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया।
विज्ञान अपनी प्रारम्भिक दशा में होने के कारण इन नियमों एवं सिद्धान्तों कापूरा-पूरा विवेचन नहीं कर पाता। धीरे-धीरे वैज्ञानिक अनुसंधानो में जैसे-जैसे परिपक्वता आयेगी, हमें वास्तुशास्त्रीय नियमों की अच्छी और तर्क-संगत वैज्ञानिक व्याख्या मिल सकेगी।
डॉ. सुभाष चन्द्र मिश्र, ज्योतिष विभागाध्यक्ष
सोमैया संस्कृत विद्यापीठ