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Astrology

सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 19 2015 2:17PM | Updated Date: Oct 19 2015 2:17PM
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दुर्गा माता के सभी नौ रूपों में कालरात्रि सबसे रौद्र रूप है। इसमें माता का काला शरीर और चार हाथ हैं। एक हाथ में कटार तो दूसरे में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। इसके साथ दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में हैं। माता के तीन नेत्र हैं और श्वास से अग्नि निकलती है। प्राचीन कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे देवाताओं की चिंता बढ़ गई और वे भगवान शिव के पास पहुंचे।

तब शिवजी ने पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। भगवान शिव की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा माता का स्वरूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया, लेकिन जैसे ही रक्तबीज का वध किया, उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज पैदा हो गए। इसे देख दुर्गा माता ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद दुर्गा माता ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया।

मंत्र -
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

पूजन : नवरात्र के सातवें दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित कर ब्राह्मण को देने से शोक से मुक्ति मिलती है, जबकि विधि-विधान से पूजा करने से समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है, शत्रुओं का नाश होता है और गृह बाधाएं भी दूर होती हैं।

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