आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी मनाई जाती । इस दिन देवी अपराजिता की पूजा की जाती है। इस पूजा में मां रणचंडी के साथ रहने वाली योगनियों जया और विजया को पूजा जाता है। विजयदशमी के दिन विभिन्न मंदिरों और घरों में शस्त्र पूजन होता है। शस्त्रागारों के साथ आमजन भी आत्मरक्षा के लिए रखे जाने वाले शस्त्रों का पूजन सर्वत्र विजय की कामना के साथ करते हैं। साथ ही देश की उन्नति की आराधना भी करते हैं। राजा विक्रमादित्य ने दशहरे के दिन देवी हरसिद्धि की आराधना की थी।
छत्रपति शिवाजी ने भी इसी दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करके भवानी तलवार प्राप्त की थी। शस्त्र पूजन की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। प्राचीन समय में राजा-महाराजा विशाल शस्त्र पूजन करते रहे हैं। आज भी इस दिन क्षत्रिय शस्त्र पूजा करते हैं। सेना में भी इस दिन शस्त्र पूजन किया जाता है। दशहरा के दिन शस्त्र पूजा के लिए सबसे पहले घर पर जितने भी शस्त्र हैं, उन पर पवित्र गंगाजल का छिड़काव करें।
शस्त्रों को पवित्र करने के पश्चात् उन पर हल्दी या कुमकुम से टीका लगाएं और फल-फूल अर्पित करें। शस्त्र पूजा में शमी के पत्ते जरूर चढ़ाएं। दशहरे पर शमी के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। सनातन परंपरा में शस्त्र और शास्त्र दोनों का बहुत महत्व है। शास्त्र की रक्षा और आत्मरक्षा के लिए धर्मसम्म्त तरीके से शस्त्र का प्रयोग होता रहा है। प्राचीनकाल में क्षत्रिय शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इसी दिन का चुनाव युद्ध के लिए किया करते थे। पूर्व की भांति आज भी शस्त्र पूजन की परंपरा कायम है और देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में आज भी शस्त्र पूजा बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है।
दशहरा पर्व के अवसर पर अपने शस्त्र को पूजने से पहले सावधानी बरतना न भूलें। हथियार के प्रति जरा-सी लापरवाही बड़ी भूल साबित हो सकती है। घर में रखे अस्त्र-शस्त्र को अपने बच्चों व नाबालिगों की पहुंच से दूर रखें। हथियार को खिलौना समझने की भूल कभी न करें। क्योंकि इसी बच्चे इसे खिलौना समझकर कई तरह की दुर्घटनाओं का शिकार हो सकते हैं। सबसे अहम व जरूर बात कि पूजा के दौरान बच्चों को हथियार न छूने दें ताकि किसी भी तरह का प्रोत्साहन बच्चों को न मिले।